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________________ आगम (०५) प्रत सूत्रांक [६०१ -६०२] दीप अनुक्रम [ ७०६ -७०७] “भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१७], वर्ग [−], अंतर् शतक [-], उद्देशक [४], मूलं [६०१-६०२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः तृतीयोदेशके एजनादिका क्रियोक्ता, चतुर्थेऽपि क्रियैवोच्यते इत्येवंसम्बन्धस्यास्येदमादिसूत्रम् तेणं काले २ रायगिहे नगरे जाव एवं वयासी अस्थि णं भंते ! जीवाणं पाणाइबाएणं किरिया कज्जइ ?, |हंता अस्थि, सा भंते । किं पुट्ठा कजह अपुट्ठा कज्जइ ?, गोयमा ! पुट्ठा कज्जइ नो अपुट्ठा कज्जइ, एवं जहा पढमसए छहुद्देसए जाव नो अणाणुपुविकडाति वत्तवं सिया, एवं जाव वैमाणियाणं, नवरं जीवाणं एगिंदि|| याण व निवाघाएणं छद्दिसिं वाघायं पहुच सिय तिदिसिं सिय चउदिसिं सिय पंचदिसिं सेसाणं नियमं छद्दिसिं । अस्थि णं भंते! जीवाणं मुसावाएणं किरिया कज्जइ ?, हंता अत्थि, सा भंते । किं पुट्ठा कज्जइ जहा पाणाइवाए दंडओ एवं मुसावाएणवि, एवं अदिन्नादाणेणचि मेहुणेणचि परिग्गद्देणवि, एवं एए पंच दंडगा ५ जंसमयनं भंते! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कज्जइ सा भंते! किं पुट्ठा कजह अपुट्ठा कञ्जइ, एवं तहेच जाव वत्तद्वं सिया जाव वैमाणियाणं, एवं जात्र परिग्गहेणं, एवं एतेवि पंच दंडगा १० | जंदेसेणं भंते ! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कजति एवं चैव जाव परिग्गहेणं, एवं एतेवि पंच दंडगा १५ । जंप सन्नं भंते! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कज्जइ सा भंते ! किं पुढा कज्जति एवं तहेव दण्डओ एवं जाव परिग्ग| हेणं २०, एवं एए वीसं दंडगा । (सूत्रं ६०१ ) जीवाणं भंते! किं अन्तकडे दुक्खे परकडे दुक्खे तदुभयकडे दुक्खे ?, गोयमा ! अतकडे दुक्खे नो परकडे दुक्खे नो तदुभयकडे दुक्खे, एवं जाव बेमाणियाणं, जीवा णं भंते! किं अतकडं दुक्खं वेदेति परकर्ड दुक्खं वेदेति तदुभयकडे दुक्खं वेदेति ?, गोयमा ! अतकडे दुक्खं वेदेति नो ucation Internationa अत्र सप्तदशमे शतके चतुर्थ-उद्देशक: आरभ्यते For Pernal Use On ~ 1459~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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