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________________ आगम (०५) प्रत सूत्रांक [५९१] दीप अनुक्रम [६९६ ] “भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं + वृत्तिः ) शतक [१७], वर्ग [−], अंतर् शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [५९१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः किरिए ?, गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे रुक्वस्स मूलं पचालेमाणे वा पवाडेमाणे वा तावं चणं से पुरिसे काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुट्ठे, जेसिंपिय णं जीवाणं सरीरेहिंतो मूले निवत्तिए जाब बीए | निद्यत्तिए तेविय णं जीवा काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुट्ठा, अहे णं भंते । से मूले अप्पणी गरुयत्ताए जाव जीवियाओ ववरोवे तओ णं भंते ! से पुरिसे कतिकिरिए ?, गोयमा ! जावं च णं से मूलै अप्पणो जाव चचरोवेइ तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव चाहिं किरियाहिं पुट्ठे, जेसिंपिय णं जीवाण | सरीरेहिंतो कंदे निवत्तिए जाब बीए निवतिए तेवि णं जीवा काइयाए जाव चाहिं पुट्ठा, जेसिंपिय णं | जीवाणं सरीरेहिंतो मूले निवन्तिए तेचि णं जीवा काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुट्ठा, जेविय णं से जीवा | अहे वीससाए पच्चोवयमाणस्स उवग्गहे वईति तेवि णं जीवा काइयाए जाव पंचहिं किरियाहिं पुट्ठा ॥ पुरिसे णं भंते । रुक्खस्स कंटुं पचालेह०, गो० ! तावं च णं से पुरिसे जाव पंचहि किरिया हिं पुढे, जेसिंपिणं जीवाणं सरीरेहिंतो मूले निवत्तिए जाव बीए निवत्तिए तेवि णं जीवा जाव पंचहि किरियाहिं पुट्ठा, अहे णं भंते! से कंदे अप्पणो जाब चउहिं पुढे, जेसिंपिणं जीवाणं सरीरेहिंतो मूले नितिए खंधे नि० जाव चउहिं पुट्ठा, जेसिंपि णं जीवाणं सरीरेहिंतो कंदे निवत्तिए तेवि य णं जीवा जाव पंचहिं पुट्ठा, जेवि य से जीवा अहे वीससाए पञ्चावयमाणस्स जाव पंचहिं पुट्ठा जहा खंधो एवं जाव बीयं (सूत्रं ५९१ ) ॥ 'पुरिसे ण' मित्यादि, 'ताल'ति तालवृक्षं 'पचालेमाणे वत्ति प्रचलयन् या 'पवाडेमाणे वत्ति अधःप्रपातयन् वा Education International For Parts Only ~ 1445~ ে *%%%
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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