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आगम
(०५)
"भगवती'- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति शतक [१७], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [५९०] + गाथा मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती"मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [५९०]
दीप अनुक्रम [६९३-६९५]]
व्याख्या-18||रार्थानुगतश्चतुर्दशः १४ 'विजु'त्ति विद्युत्कुमाराभिधायकः पश्चदशः १५ 'वाउ'त्ति वायुकुमारवक्तव्यतार्थः षोडश १६ १७ शतके प्रज्ञप्तिः अग्गि'त्ति अग्निकुमारवक्तव्यतार्थः सप्तदशः १७ 'सत्तरसे'त्ति सप्तदशशते एते उद्देशका भवन्ति । तत्र प्रथमोदेशकार्थ- | उद्देशः१ अभयदेवी- प्रतिपादनार्थमाह-रायगिहे'इत्यादि ॥ 'भूयाणंदे'त्ति भूतानन्दाभिधानः कणिककराजस्य प्रधानहस्ती ॥ अनन्तरं उदायिभूः या वृत्तिः भूतानन्दस्योद्वर्तनादिका क्रियोक्तेति क्रियाऽधिकारादेवेदमाह
| तानन्दौ
सू ५९० ॥७२०॥ पुरिसे णं भंते । तालमारुहर ता०२ तालाओ तालफलं पचालेमाणे वा पवाडेमाणे वा कतिकिरिए ।
तालादिमगोयमा! जावंच णं से पुरिसे तालमारुहइ तालमा०२ तालाओ तालफलं पयालेइ वा पवाडेइ वा तावं च |
चालनादौ से पुरिसे काइयाए जाव पंचाहि किरियाहिं पढे, जेसिंपिय णं जीवाणं सरीरेहिंतो तले निवत्तिए तलफले निध-15
क्रिया: त्तिए तेऽविणं जीबा काइयाए जाच पंचहि किरियाहिं पुट्ठा॥ अहे णं भंते ! से तालप्फले अप्पणो गायत्ताएसू ५९१ जाव पचोवयमाणे जाई तत्थ पाणाई जाय जीवियाओ ववरोवेति तए णं भंते ! से पुरिसे कतिकिरिए 2.IN गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे तलप्फले अप्पणो गरुयत्ताए जाव जीवियाओ ववरोवेति तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव चउहि किरियाहिं पुढे, जेसिपि णं जीवाणं सरीरेहिंतो तले निबत्तिए तेचि णं जीवा काइ-14 याए जाव चउहिं किरियाहिं पुट्ठा, जेसिपिणं जीवाणं सरीरोहिंतोतालप्फले निवत्तिए तेविणं जीवा काइयाए
७२०॥ जाव पंचहि किरियाहिं पुट्टा, जेविय से जीवा अहे वीससाए पचोवयमाणस्स उवग्गहे बटुंति तेऽपिय णं जीवा काइयाए जाच पंचहि किरियाहिं पुट्टा ॥ पुरिसे णं भंते ! रुक्खस्स मूलं पचालेमाणे वा पवाडेमाणे वा कति
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