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आगम (०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१३], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [४७०-४७२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
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प्रत सूत्रांक [४७०-४७२]
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| नरए किं सम्मबिहीनेरइया पुच्छा, गोयमा ! सम्मट्टिीनेरइया न उवव० मिच्छादिहीनेरहया उवव० सम्मा-1 मिच्छदिही नेरइया न उवव एवं उचट्टतिवि अविरहिए जहेब रयणप्पभाए, एवं असंखेज्जविस्थडेसुवि तिन्नि गमगा (सत्रं ४७१)सेनूर्ण भंते ! कण्हलेस्से नीललेस्सेजाव सुक्कलेस्से भवित्ता कण्हलेस्सेसु नेरइएमु उवव०१,5 |हंता गोयमा ! कण्हलेस्से जाप उववजंति, से केण?णं भंते ! एवं बुचई कण्ह लेस्से जाव उववजंति?, गोषमा! | लेस्सट्ठाणेसु संकिलिस्समाणेसु संकि.२ कण्हलेसं परिणमइ कण्ह०२ कण्हलेसेसु नेरइएमु उववजंति से है | तेणटेणं जाव उबवजंति । से नूर्ण भंते ! कण्हलेस्से जाव सुक्कले से भवित्ता नीललेस्सेसु नेरइएसु उववजं|ति ?, हंता गोयमा ! जाव उववजंति, से के गट्टेणं जाच उववजंति ?, गोषमा! लेस्सहाणेसु संकिलि-14 कस्समाणेसु चा विसुज्झमाणेसु नीललेस्सं परिणमंति नील०२ नीललेस्सेसु नेरइएसु उवव० से तेणतुणं है
गोयमा! जाव उवव०, से नूर्ण भंते ! कण्हलेस्से नील जाव भविसा काउलेस्सेसु नेरइएसु खचव एवं | जहा नीललेस्साए तहा काउलेस्सावि भाणियवा जाव से तेणतुणं जाव उवववति । सेवं भंते ! सेवं 31 भंते ! (सूत्रं ४७२)॥१३-१॥
'पुढवी'त्यादि, 'पुरुषी'ति नरकपृथिवीविषयः प्रथमः १, 'देव'त्ति देवप्ररूपणार्थो द्वितीयः २'अणंतर'त्ति अनन्त-13 राहारा नारका इत्याद्यर्थः प्रतिपादनपरस्तुतीयः ३, 'पुढवित्ति पृथिवीगतवफव्यताप्रतिवद्धश्चतुर्थः ४, 'आहारे'त्ति || |नारकाचाहारप्ररूपणार्थः पञ्चमः ५, 'उववाए'त्ति नारकाद्युपपातार्थः षष्ठः ६, 'भास'त्ति भाषार्थः सप्तमः ७ 'कम्म'त्ति
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दीप अनुक्रम [५६३
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रत्नप्रभा-आदि नरकेषु उत्पादः
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