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आगम
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"भगवती'- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१३], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [४७०-४७२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [४७०-४७२]
व्याख्या- निरयावाससयसहस्से पपणत्ते, सेसं जहा पंकप्पभाए ॥ अहेसत्तमाए णं भंते ! पुढवीए कति अणुक्तरा मह
|१२ शतके ज्ञप्तिः तिमहालया महानिरया पन्नत्ता, गोयमा ! पंच अणुत्तरा जाव अपइहाणे, ते णं भंते ! किं संखेजवित्थडा अभयदेवी
१ उद्देशः असंखेजवित्थडा, गोयमा! संखेजवित्थडे य असंखेचवित्थडा य, अहेसत्तमाए णं भंते ! पुढवीए पंचसु ॥ रत्नप्रभादिया वृत्तिः२४
अणुत्तरेसु महतिमहालया जाव महानिरएमु संखेनवित्थडे नरए एगसमएणं केवतिया उच० १, एवं जहा त्पादः ॥५९॥ पंकप्पभाए नवरं तिसुनाणेसुन उववान उबट्ट, पन्नत्त एसु तहेव अस्थि, एवं असंखेजवित्थडेसुवि नवरं असं- सू४७१
खेजा भाणियथा ॥ (सूत्र ४७०)। इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढबीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसुई। |संखेजवि. नरएसु किं सम्मदिट्टी नेरतिया उवव० मिच्छदिट्टीने. उव० सम्मामिच्छदिट्टी नेर० उ० गोयमा! सम्मदिट्ठीवि नेरड्या उवमिच्छादिट्ठीवि नेरइया उब. नो सम्मामिच्छदिट्ठी उव० । इमीसे थे। भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेजवित्थडेसु नरएसु किं सम्मदिट्टी नेर | उच्वइंति एवं चेव । इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेजबित्थडा नरगा किं सम्मदिट्टीहिं नेरइएहि अविरहिया मिच्छादिट्ठीहिं नेरइएहिं अविरहिया सम्मामिच्छदिट्ठीहिं नेरइएहि अविरहिया वा?, गोयमा ! सम्मबिट्टीहिंवि नेरइएहिं अविरहिया मिच्छादिट्ठीहिवि अविरहिया
॥५९८॥ सम्मामिच्छादिहीहि अविरहिया विरहिया वा, एवं असंखेजवित्थडेसुवि तिनि गमगा भाणियबा, एवं सकरप्पभाएवि, एवं जाव तमाएवि । अहेसत्तमाए णं भंते ! पुढवीए पंचसु अणुत्तरेसु जाव संखेज्जवित्थडे
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दीप अनुक्रम [५६३
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रत्नप्रभा-आदि नरकेषु उत्पादः
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