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________________ आगम “स्थान" - अंगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) स्थान [9], उद्देशक [३], मूलं [४४५] (०३) मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०३], अंग सूत्र - [०३] "स्थान" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [४४५]] दीप अनुक्रम श्रीस्थाना-बाययोगनिरोधे सति अच्छविर्भवति अव्यथको वा १ निरतिचारत्वादशवलः २ क्षपितकर्मत्वादकांश इति तृतीयः ३, ५ स्थाना गसूत्र ज्ञानान्तरेणासम्पृक्तत्वात् संशुद्धज्ञानवर्शनधरः पूजाईत्वादईन् नास्य रहो-रहस्यमस्तीत्यरहा वा जितकषायत्वाजिनः, उद्देशः३ वृत्तिः केवलं-परिपूर्ण ज्ञानादित्रयमस्यास्तीति केवलीति चतुर्थः ४, निष्क्रियत्वात्सकलयोगनिरोधे अपरिश्रावीति पञ्चमः, ५, क-15 पञ्च नि चित्पुनरहन जिन इति पश्चमः । अत्र भाष्यगाथा:-"होइ पुलाओ दुविहो लद्धिपुलाओ तहेव इयरो य । लद्धिपुलाओ || ग्रेन्थाः ॥३३७॥ संघाइकले इयरो य पंचविहो ॥१॥ नाणे देसण चरणे लिंगे अहसुहमए य नायब्यो। नाणे दंसणचरणे तेसिं तु विराहण सु०४४५ असारो ॥२॥ लिंगपुलाओ अन्नं निकारणओ करेइ सो लिंगं । मणसा अकप्पियाणं निसेवओ होइहामुहुमो ॥३॥ सारीरे उपकरणे वासियत्तं दुहा समक्खायं । मुफिलवस्थाणि धरे देसे सम्बे सरीरंमि ॥४॥ आभोगमणाभोग संबुड-15 मस्संतुष्टे अहासुहुमे । सो दुविहो वा बउसो पंचविहो होइ नायब्वो ॥५॥ आभोगे जाणतो करेइ दोसं तहा अपा-IN |भोगे । मूलत्तरेहि संवुड विवरीय असंवुडो होइ॥६॥ अच्छिमुहं मज्जमाणो होइ अहासुहमओ तहा बउसो । पडि-15 सेवणा कसाए होइ कुसीलो दुहा एसो॥७॥ नाणे दंसणचरणे तवे य अहसुहमए य बोद्धब्वे । पडिसेवणाकुसीलो र पंचविहो ऊ मुणेअब्बो ॥८॥ नाणादी उवजीवइ अहसुहमो अह इमो मुणेयब्बो । साइजतो राग वचइ एसो तवच-IN रणी ॥९॥ [एष तपश्चरणीत्येवमनुमोद्यमानो हर्ष ब्रजतीत्यर्थः> "एमेव कसायंमिवि पंचविहो चेव होइ कुसीलो उ||3 कोहेणं बिजाई पउंजएमेव माणाई ॥१०॥" एवमेव मानादिभिरित्यर्थः> "एमेव देसणतवे सावं पुण देइ उ चरित्तमि ॥३३७ मणसा कोहाईणं करेइ अह सो अहासुमो ॥११॥ पढमा १ पढमे २ चरम ३ अचरिमे ४ अहसुहुमे ५ होइ नि-* [४८३] SARELatun international निर्ग्रन्थ शब्दस्य व्याख्या एवं भेद-प्रभेदाः ~677~
SR No.004103
Book TitleAagam 03 STHAN Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1059
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size220 MB
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