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________________ आगम “स्थान" - अंगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) स्थान [४], उद्देशक [२], मूलं [२८४] (०३) मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०३], अंग सूत्र - [०३] "स्थान" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: दसूत्र प्रत सूत्रांक [२८४] श्रीस्थाना-II दाने-भिक्षणे याच्या भवः सामुदानिकः तस्य नो सम्यग्गवेषयिता-अन्येष्टा भवति, इत्येवंप्रकार:-एतैरनन्तरोदितै- स्थाना० मारित्यादि निगमनम् , एतद्विपर्ययसूत्रं कण्ठ्यं । निग्रन्धप्रस्तावात्तदकृत्यनिषेधाय सूत्रे उद्देशः २ वृत्तिः नो कप्पति निम्गंधाण वा निमगंधीण वा चाहिं महापाडिवएहि सझायं करेत्तए, तं०-भासाहपाडिवए इंदमहपाडि महाप्रति॥२१३॥ वए कतियपाटिवए सुगिम्हपाडिवए १, णो कप्पइ निग्गंथाण पा निग्गंधीण या चाहिं संझाहिं सज्झार्य करेत्तए, तं०पढमाते पच्छिमाते माहे अडरते २॥ कपइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा चाउकालं सज्झायं करेत्तए, सं०-पुन्वण्हे, सू०२८५अवरहे पोसे पर्से (सू०२८५) चउबिहा लोगठिती पं० सं०-आगासपतिहिए बाते वातपतिहिए उदधी २८६उदधिपतिट्ठिया पुढची पुढविपइद्विया तसा थावरा पाणा ४ (सू०२८६) चत्तारि पुरिसजाता ५००-तहे नाममेगे २८७मोतहे नामगेगे सोबत्थी नाममेगे पधाणे नाममेगे ४, चत्तारि पुरिसजाया पं०२०-आयंतकरे नाममेगे णो परंतकरे १ परंतकरे णाममेगे जो आतंतकरे २ एगे आतंतकरेवि परतकरेवि ३ एगे जो आतंतकरे णो परंतफरे ४, २, पत्तारि पुरिसजाता पं० २०-आतंतमे नाममेगे नो परंतमे परंतमे नो (ह) ४, ३, चत्तारि पुरिसजाया पं० तं०-आदमे नाममेगे णो परंदमे ४, ४, (सू०२८७) चउन्विधा गरहा पं० सं०-उवसंपज्जामित्तेगा गरहा विति गिच्छामिलेगा गरहा जंकिंचिमिच्छामीत्तेगा गरहा एवंपि पन्नत्तेगा गरहा (सू० २८८) 'नो कप्पई'त्यादिके कण्ठये, केवलं महोत्सवानन्तरवृत्तित्वेनोत्सवानुवृत्त्या शेषप्रतिपद्धर्मविलक्षणतया महाप्रतिपद-181॥ हस्तासु, इह च देशविशेषरूढया पाडिवएहिंति निर्देशः, स्वाध्यायो-नन्द्यादिसूत्रविषयो वाचनादिः, अनुप्रेक्षा तु नं निषि SA565 २८८ दीप अनुक्रम [३०३] 'अस्वाध्याय-दिवस सम्बन्धी कथनं ~429~
SR No.004103
Book TitleAagam 03 STHAN Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1059
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size220 MB
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