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________________ आगम (०३) “स्थान" - अंगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) स्थान [४], उद्देशक [२], मूलं [२८२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०३], अंग सूत्र - [०३] "स्थान" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२८२] प्पकहा देसच्छंदकहा देसनेवत्थकहा, रायकहा पउब्विहा पं० त०-रत्नो अतिताणकहा रनो निजाणकहा रनो बलवाहणकहा रनो कोसकोट्ठागारकहा, पबिहा धम्मकहा पं०२०-अक्षेवणी विक्खेवणी संवेयणी निव्वेगणी, अक्खेवणी कहा परविहापं० त०-आयारअक्खेवणी ववहारअक्खेवणी पन्नत्तिअक्खेवणी दिद्विवातअक्सेवणी, विक्खेवणी कहा चउन्विहा पं० २०-ससमय कहेइ, ससमयं कहित्ता परसमयं कहेइ १, परसमय कहेत्ता ससमय ठावतित्ता भवति २, सम्भावातं कहेइ सम्मावातं कहेत्ता मिच्छावातं कहेइ ३ मिच्छाबात कहेत्ता सम्मावातं ठावतित्ता भवति ४, संवेगणी कथा चउबिहा पं० सं०-दहलोगसंवेगणी परलोगसंवेगणी आतसरीरसंवेगणी परसरीरसंवेगणी, णिवेगणीकहा पाउन्विहा पं० सं०-इहलोगे दुचिन्ना कम्मा इहलोगे दुहफलविवागसंजुत्ता भवंति १, इहलोगे दुचिन्ना कम्मा परलोगे दुरुफलविवागसंजुत्ता भवंति २, परलोगे दुश्चिन्ना कम्मा इहलोगे दुहफलविवागसंजुत्ता भवंति ३, परलोगे दुचिन्ना कम्मा परलोवे दुहफलविवागसंजुत्ता भवंति ४, इहलोगे सुचित्रा कम्मा इदलोगे मुहफलविवागसं जुत्ता भवंति १, इहलोगे सुचिन्ना कम्मा परलोगे सुहफलविवागसंजुत्ता भवंति २ एवं चउभंगो ४ (सू० २८२) सुगमम् , नवरं, विरुद्धा संयमबाधकत्वेन कथा-वचनपद्धतिर्विकथा, ततः खीणां स्त्रीषु वा कथा स्त्रीकथा, इयं च कथेरयुक्तापि स्त्रीविषयत्वेन संयमविरुद्धत्वाद्विकथेति भावनीयेति, एवं भक्तस्य-भोजनस्य, देशस्य-जनपदस्य, राज्ञोनृपस्येति, ब्राह्माणीप्रभूतीनामन्यतमाया या प्रशंसा निन्दा वा सा जात्या जातेर्वा कथेति जातिकथा, यथा-'घिग्नाझणीवाभावे, या जीवन्ति मृता इव । धन्या मन्ये जने शूद्रीः, पतिलक्षेऽप्यनिन्दिताः॥१॥ इति, एवं उग्रादिकुलो WERMEHTHANESH दीप अनुक्रम [३०१] | 'विकथा' सम्बन्धी दीर्घचर्चा ~422~
SR No.004103
Book TitleAagam 03 STHAN Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1059
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size220 MB
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