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________________ आगम “स्थान" - अंगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) स्थान [१], उद्देशक [-1, मूलं [१६] (०३) मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०३], अंग सूत्र - [०३] "स्थान" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: श्रीस्थाना- प्रत सूत्रांक वृत्तिः ॥१९॥ [७-१६] दीप अनुक्रम [७-१६] जीवें' इत्यादि, अथवा उक्ताः सामान्यतः प्रस्तुतशास्त्रव्युत्पादनीया जीवादयो नव पदार्थाः, साम्प्रतं जीवपदार्थ विशे- १ स्थानापेण प्ररूपयन्नाह ध्ययने एगे जीने पाटिकरण सरीरएण (सू०१७) एगा जीवाणं अपरिआइत्ता बिगुठवणा (सू० १८) एगे मणे (सू०१९) जीवपदाएगा बई (सू०२०) एगे कायवायामे (सू० २१) एगा उप्पा (सु० २२) एगा बियती (सू० २३) एगा वि थे विशेषाः यचा (सू० २४) एगा गती (सू० २५) एगा आगती (सू० २६) एगे चयणे (सू० २७) एगे उपवाए (सू० २८) एगा तफा (सू० २९) एगा सन्ना (सू० ३०) एगा मन्ना (सू०३१) एगा विनू (सू०३२) एगा वेयणा (सू०३३) एगा छेयणा (सू०३४) एगा भैयणा (सू० ३५) एगे मरणे अंतिमसारीरियाणं (सू०३६) एगे संमुद्धे अहाभूए पत्ते (सू०३७) एगदुक्ने जीवाणं एगभूए (सू०३८) एगा अहम्मपडिमा जसे आया परिकिलेसति (सू०३९) एगा धम्मपहिमा जं से आया पज्जवजाए (सू०४०) एगे मणे देवासुरमणुयाण संसि संसि समयंसि (सू०४१) एगे उट्ठाणकम्मबलबीरियपुरिसकारपरकमे देवासुरमणुयाणं तंसि २ समयसि (सू०४२) एगे नाणे एगे दसणे एगे चरिते (सू०४३) का 'एगे जीवे पाडिकएणं सरीरएणं' एकः केवलोजीवितवान् जीवति जीविष्यति चेति जीवः-प्राणधारणधर्मा आत्मेत्यर्थः, एक जीवं प्रति गतं यच्छरीरं प्रत्येकशरीरनामकर्मोदयात् तत्सत्येकं तदेव प्रत्येकक, दीर्घत्वादि प्राकृतत्वात,13/ तेन प्रत्येककेन शीर्यत इति शरीर-देहः तदेवानुकम्पितादिधर्मोपेतं शरीरकं तेन लक्षितः तदानित एको जीव इत्यर्थः, Ind Santauratoni nd Turasurary.com ~ 41~
SR No.004103
Book TitleAagam 03 STHAN Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1059
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size220 MB
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