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आगम
“स्थान" - अंगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) स्थान [४], उद्देशक [१], मूलं [२७३]
(०३)
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०३], अंग सूत्र - [०३]
"स्थान" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
श्रीस्थानाइसूत्र
प्रत सूत्रांक
वृत्तिः
२०४॥
K४ स्थाना०
उद्देशः१ अग्रमहिप्यः विकृतयः कूटागाराः सू०२७३२७४२७५
[२७३]
चत्वारि अगमहिसीओ पं० सं०-रोहिणी णवमिता हिरी पुष्फवती, एवं महापुरिसस्सपि, अतिकायस्स णं महोरगिंदस्स चत्तारि अगमहिसीओ पं० तं०-भुयगा भुयगवती महाकच्छा फुडा, एवं महाकायस्सवि, गीतरतिस्स गं गंधबिदस्स चत्वारि अग्ग० ५००-सुधोसा विमला सुस्सरा सरस्सती, एवं गीयजसस्सवि, चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरनो चत्तारि अग्गमहिसीओ पं० ०-चंदप्पमा दोसिणाभा अश्चिमाली पभंकरा, एवं सूरस्सवि, णवर सूरप्पमा दोसिणाभा अश्चिमाली पभंकरा, इंगालस्स गं महागहस्स चत्तारि अग्गमहिसीओ पं० २०-विजया बेजयंती जयंती अपराजिया, एवं सब्जेसि महागहाणं जाव भावकेउस्स, सकस्स णं देविंदस्स देवरन्नो सोमस्स महारो चत्तारि अग्ग० ५० तं०-रोहिणी मयणा चित्ता सोमा, एवं आव चेसमणस्स, ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरत्नो सोमस्स महारस्रो चत्तारि अग०५० त०-पुढवी राती रयणी विजू, एवं जाव वरुणस्स (सू० २७३) चत्तारि गोरसविगतीओ पं० सं०-खीर दहिं सपि गवणीतं, चचारि सिणेहविगइतीओ पं००-रोहं पयं वसा णवणीत, चत्तारि महाविगतीओ पं० सं०-महुं मंसं मज्जं णवणीतं (सू०२७४) चत्तारि कूडागारा पं० सं०-गुत्ते णामं एगे गुत्ते गुत्ते णाम एगे अगुप्ते अगुत्ते णाम एगे गुत्ते अगुत्ते णाम एगे अगुत्ते, एवामेव पत्तारि पुरिसजाता पं० त०-गुत्ते णाममेगे गुत्ते ४, चत्तारि कूडागारसालाओ पं० २०-गुत्ता णाममेगा गुत्तदुवारा गुत्ताणाममेगा भगुतदुवारा अगुत्ता णाममेगा गुत्तदुवारा अगुत्ता णाममेगा अगुत्तदुवारा, पवामेव पचारिस्थीओ पं०२०-गुत्ता नाममेगा गुनिंदिता गुत्ता णाममेगा अगुत्तिदिआ [४] ४ (सू० २७५) चउविहा ओगाहणा पं००-यूयोगाहणा खे
दीप अनुक्रम [२८७]
चमर आदि असुरकुमारस्स अग्रमहिष्य:
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