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आगम
(०३)
प्रत
सूत्रांक
[२७२]
दीप
अनुक्रम
[ २८६]
"स्थान" अंगसूत्र - ३ ( मूलं + वृत्तिः)
स्थान [४], उद्देशक [1] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित .... ..आगमसूत्र [०३ ], अंग सूत्र [०३]
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च्छन्नमगीतार्थासमक्षं, अत्र चाद्ये भङ्गकत्रये पुष्टालम्बनों वकुशादिः निरालम्बनो वा पार्श्वस्थादिर्द्रष्टव्यः, चतुर्थे तु निर्ग्रन्थः स्नातको वेति, अन्तराधिकारादेव देवपुरुषाणां स्त्रीकृतमन्तरं प्रतिपादयन्नाह
चमर आदि असुरकुमारस्स अग्रमहिष्यः
चमरस्त णं असुरिंदस्स असुरकुमाररनो सोमस्स महारनो चत्तारि अग्गमहिसीओ पं० तं० कणगा कणगलता चित्तगुत्ता वसुंधरा, एवं जमस्स वरुणस्स वेसमणस्स, वहिस्स णं वतिरोयणिदस्स वतिरोयणरत्र सोमस्स महारनो चचारि अग्गमहिसीओ पं० वं०-- मित्तगा सुभद्दा विजुवा असणी, एवं जमस्स वेसमणस्स वरुणरस, धरणस्स णं नागकुमारिंदस्स नागकुमाररनो कालवालस्स महारनो चत्तारि अग्गमहिसीओ पं० [सं० असोगा विमला सुप्पभा सुदंसणा, एवं जान संखवालस्स, भूताणंदस्स णं णागकुमारिंदस्स नागकुमाररन्नो कालवालस्स महारनो चत्तारि अग्ग० पं० सं०सुनंदा सुभदा सुजाता सुमणा, एवं जान सेलवालस्स जहा धरणस्स एवं सब्बेसि दाहिणिंद लोगपालाणं जाव घोसरस जहा भूतानंदस्स एवं जाव महाघोसस्स लोगपालाणं, काछस्स णं पिसाईदस्स पिसायरनो चत्तारि अग्गमहिसीओ पं० तं० कमला कमलप्पभा उप्पला सुदंसणा एवं महाकालस्सवि, सुरुवस्स णं भूविंदस्स भूतरनो चत्तारि जग्गमहिसीओ पं० तं रूपवती बहुरुवा सुरुवा सुभगा एवं पढिरुवस्सवि, पुण्णभदस्त णं जक्खिंदस्स जक्खरनो चत्तारि अगमहिसीओ पं० [सं० पुत्ता बहुपुत्तिता उत्तमा तारगा, एवं माणिभदस्सवि, भीमस्स णं रक्खसिदस्स रक्खसरनो दत्तारि अग्गमहिसीओ पं० नं०पडमा वसुमती कणगा रवणप्पभा, एवं महाभीमस्सवि, किंनरस्त णं किंनरिंदरस चत्तारि अग्ग० पं० ० वडेंसा केतुमती रतिसेणा रतिप्पभा, एवं किंपुरिसरसवि, सप्पुरिसस्स णं किंपुरिसिंदरस०
मूलं [ २७२ ] "स्थान" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः
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