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________________ आगम (०३) “स्थान" - अंगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) स्थान [३], उद्देशक [१], मूलं [१४२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०३], अंग सूत्र - [०३] "स्थान" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१४२] दीप अनुक्रम [१५०] जजीविया कंदावि खंधावि तयावि सालावि पवालावि, पत्ता पत्तेय जीविया, पुष्फा अणेगजीविया, फला एगडिया" इति ॥ अनन्तरं वनस्पतय उक्तास्ते च जलाश्रया बहवो भवन्तीतिसम्बन्धाजलाश्रयाणां तीर्धानां निरूपणायाह-जंबुद्दीवर इत्यादि पञ्चदशसूत्री साक्षादतिदेशतश्च, सुगमा च, केवलं तीर्थानि-चक्रवर्तिनः समुद्रशीतादिमहानद्यवतारलक्षणानि 8 तन्नामकदेवनिवासभूतानि, तत्र भरतैरावतयोस्तानि पूर्वदक्षिणापरसमुद्रेषु क्रमेणेति, विजयेषु तु शीताशीतोदामहानद्योः | पूर्वादिक्रमेणवेति ॥ जम्बूद्वीपादौ मनुष्यक्षेत्रे सन्ति तीर्थानि प्ररूपितानि, अधुना तत्रैव सन्तं कालं त्रिस्थानोपयोगिनं | सूत्रपञ्चदशकेन साक्षादतिदेशाभ्यां निरूपयन्नाह जंबुद्दीचे २ भरहेरखएमु बासेसु तीताए उस्सप्पिणीते सुसमाए समाए तिन्नि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो हुस्था १, एवं ओसप्पिणीए नवरं पन्नत्ते २, आगमिस्साते उस्सप्पिणीए भविस्सति ३, एवं धायइसंडे पुरच्छिमद्धे पञ्चस्थिमद्धेवि ९, एवं पुक्खरखरदीवतपुरछिमद्धे पचस्थिमद्धेवि कालो भाणियब्यो १५। जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु सीताते उस्सप्पिणीते सुसमसुसमाते समाए मणुया तिण्णि गाउयाई उद्धं उच्चत्तेणं तिनि पलिओवमाई परमाणु पालइत्था १, एवं इमीसे ओसप्पिगीते २ आगमिस्साए पस्सप्पिणीए ३, अंबुद्दीवे दीवे देवकुरुउत्तरकुरासु मणुया तिष्णि गाउभाई उलं उचचेर्ण पं०, तिनि पलिओवमाई परमाउँ पाठयंति ४, एवं जाव पुक्खरखरदीवद्धपञ्चत्थिमद्धे २०। जंबुद्दीवे दीये भरहेरखएमु वासेमु एगमेगाते ओसप्पिणिस्सप्पिणीए तो बसाओ उपजिसु वा उप्पचंति वा उप्पजिस्संति वा ०-अरहंतवसे चकबहिवंसे दसारवंसे २१, एवं जाव पुक्खरवरदीवद्धपञ्चस्थिमद्धे २५। जंबूदीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु एगमेगाए ओसप्पिणीउस्सण्णिीए तभी 604 ~248~
SR No.004103
Book TitleAagam 03 STHAN Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1059
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size220 MB
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