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आगम
“स्थान" - अंगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) स्थान [२], उद्देशक [३], मूलं [९२]
(०३)
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०३], अंग सूत्र - [०३]
"स्थान" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
स्थान
प्रत
श्रीस्थानानसूत्रदृत्तिः
काध्ययने उद्देशा३
सूत्रांक
॥८०॥
[९२]
815
दीप अनुक्रम
सुवग्गू वो गंधिला दो गंधिलावती ३२ दो खेमाओ दो खेमपुरीओ दो रिद्वाओ दो रिट्ठपुरीओ दो खग्गीतो दो मंजुसाओ दो ओसधीजो दो पोंदरिगिणीओ दो सुसीमाओ दो कुंडलाओ दो अपराजियाओ दो पभंकराओ दो अंकावईओ दो पम्हापईओ दो सुभाओ दो खणसंचयाओ दो आसपुराओ दो सीदपुराओ दो महापुराओ दो विजयपुराओ दो अपराजिताओ दो अवराओ दो असोबाओ दो विगयसोगाओ दो विजयातो दो वेजयंतीओ दो जयंतीओ दो अपराजियाओ दो चकपुरानो दो सग्गपुराओ दो अवज्झाओ दो अउज्झाओ ३२ दो महसालवणा दो गंदणवणा दो सोमणसवणा दो पंहगवणाई दो पंडुकंबलसिलाओ दो अतिपंडुकंबलसिलाओ दो रत्तकंबलसिलामो दो अइरत्तकंबलसिलाओ दो मंदरा दो मंदरचूलिताओ, चायतिसंडस्स णं दीवस्स बेदिया दो गाउयाई उबमुथरेणं पन्नत्ता। (सूत्रं ९२) कालोदस्स णं समुदस्स वेइया दो गाउयाई उई उच्चत्तेणं पन्नत्ता । पुक्सरवरदीवड़पुरच्छिमद्धेणं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणेणं दो वासा पं० बहुसमतुल्ला जाव भरहे चेव एरवए चेत्र तहेव जाव दो कुराओ पं. देवकुरा चेव उत्तरकुरा येव, तत्य गं दो महतिमहालता महरमा पं० २०-कूडसामली चेव पउमरुक्खे चेव, देवा गरुले व वेणुदेवे पउमे चेक, जाव छब्बिहंपि कालं पञ्चणुभवमाणा विहरति । पुक्खरवरदीवड़पञ्चच्छिमद्धे णं मंदरस्स पञ्चयस्स उत्तरदाहिणेणं दो बासा पं० २०-तहेब णाणत्तं फूडसामली चेव महापउमरुक्खे चेव, देवा गरुले चेव वेणुदेव पुंडरीए चेव, पुक्खरवरदीवड़े ण दीवे दो भरहाई दो एरवयाई जाव दो मंदरा दो मंदरचूलियाओ, पुक्खरवरस्स णं दीवस्स वेइया दो गाउयाई लमुखत्तेणं पन्नत्ता, सम्वेसिपि ण दीवसमुदाणं वेदियाओ दो गाउयाई उडमुञ्चत्तेणं पण्णताओ (सू० ९३)
25%
[९६]
॥८
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