________________
आगम
(०३)
“स्थान" - अंगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:)
स्थान [२], उद्देशक [१], मूलं [७१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३], अंग सूत्र - [३] "स्थान" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत
R
सूत्राक
[७१]
दीप अनुक्रम [७१]
अवस्स कायव्वयं हवइ जम्हा । अंतो अहो णिसस्स य तम्हा आवस्सयं नामं ॥१॥५॥ आवश्यका व्य-४ तिरिक्तं ततो यदन्यदिति । 'आवस्सगवतिरित्ते'इत्यादि, यदिह दिवसनिशाप्रथमपश्चिमपौरुषीद्वय एव पठ्यते तत्का
लेन निवृत्तं कालिकम्-उत्तराध्ययनादि, यत्पुनः कालवेलावर्ज पठ्यते तदूर्व कालिकादित्युत्कालिकं-दशकालि४ कादीति ।। उक्तं ज्ञानं, चारित्रं प्रस्तावयति
दुविहे धम्मे पं० सं०-सुवधम्मे चेव चरित्तधम्मे चेब, सुयधम्मे दुविहे पं०.०-सुत्तसुयधम्मे चेष अवसुयधम्मे घेव, परित्तधम्मो दुबिहे पं० सं०-अगारचरित्तधम्मे चेव अणगारचरित्तधम्मे घेव, दुविहे संजमे पं० सं०-सरागसंजमे चेव - वीतरागसंजमे बेव, सरागसंजमे दुविहे पं० सं०-मुहुमसंपरायसरागसंजमे चेव बादरसंपरायसरागसंजमे घेव, मुहुमसंपरायसरागसंजमे दुविहे पन्नते, तं०-पढमसमयसुहुमसंपरायसरागसंजमे चेव अपढमसमयमु०, अथवा चरमसमयसु० अचरिमसमयसु०, अहवा सुहुमसंपरायसरागसंजमे दुविहे पं० त०-संकिलेसमाणए व विसुज्झमाणए चेव, पादरसंपरायसरागसंजमे दुबिहे पं० सं०-पढमसमयबादर अपढमसमयबादरसं०, अहवा चरिमसमय अचरिमसमय, अहवा वायरसंपरायसरागसंजमे दुविहे पं० त०-पढिवाति चेव अपडिवाति चेव, बीयरागसंजमे दुविहे पं० सं०उवसंतकसायवीयरागसंजमे चेव खीणकसायवीयरागसंजमे चेब, उवसंतकसायवीयरागसंजमे दुविहे पं० २०-पढमसमयउवसंतकसायवीतरागसंजमे चेव अपढमसमयउव०, अहवा चरिमसमय अचरिमसमय, खीणकसायवीतरागसंजमे दुविहे पं० सं०-छउमस्थखीणकसायवीयरागसंजमे चेव केवलिखीणकसायवीयरागसंजमे पेव, छउमत्थखीणकसायवी
-6-%
%
%
SAREauratoninternational
धर्मानाम् द्विविधा: भेदाः, संयमानाम् द्विविधा: भेदा:,
~ 106~