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आगम
(०२)
“सूत्रकृत्” - अंगसूत्र-२ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:)
श्रुतस्कंध [२.], अध्ययन [३], उद्देशक -], मूलं [१४], नियुक्ति: [१७८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[०२], अंग सूत्र-[०२] “सुत्रकृत्” मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति:
प्रत सूत्रांक
सूत्रकृताङ्गे २ श्रुतस्क
३ आहारपरिज्ञाध्य
न्धे शीला
डीयावृत्तिः
[५४]
॥३४९॥
दीप अनुक्रम [६८६]
उदगत्ताए अवगत्ताए पणगसाए सेचालत्ताए कलंबुगत्ताए हडताए. कसेरुगत्ताए कच्छभाणियत्ताए उप्पलत्ताए पउमत्ताए कुमुयत्साए नलिणत्ताए सुभगत्ताए सोगंधियत्ताए पोंडरियमहापोंडरियत्ताए सयपत्तत्ताए सहस्सपत्तत्ताए एवं कल्हारकोंकणयत्ताए अरविंदत्ताए तामरसत्ताए भिसभिसमुणालपुक्खलत्ताए पुक्खलच्छिभगत्ताए विउति, ते जीवा तेसिं णाणाविहजोणियाणं उदगाणं सिणेहमाहारेंति, ते जीवा आहारेति पुढवीसरीर जाव संतं, अवरेऽविय णं तेसिं उद्गजोणियाणं उदगाणं जाव पुक्खलच्छिभगाणं सरीरा णाणावपणा जावमक्वायं, एगोचेव आलावगो ॥ सूत्रं ५४॥ अहावरं पुरावार्य इहेगतिया सत्ता तेसिं चेव पुढचीजोणिएहिं रुक्वेहिं रुक्खजोणिएहिं रुकवेहि रुक्खजोणिएहिं मूलहिं जाव बीएहिं रुक्खजोणिएहिं अज्झारोहेहिं अज्झारोहजोणिएहिं अज्झारुहेहिं अज्झारोहजोणिएहिं मूलेहिं जाय धीएहिं पुढविजोणिएहिं तणेहिं तणजोणिएहिं तणेहिं तणजोणिएहिं मूलेहिं जाव बीपहिं एवं ओसहीहिवि तिन्नि आलावगा, एवं हरिएहिवि तिन्नि आलावगा, पुढविजोणिएहिवि आएहि काहिं जाव कुरेहि उद्गजोणिएहि मक्खेहिं रुक्खजोणिएहिं रुक्रवहिं रुक्खजोणिएहिं मूलेहिं जाय बीएहिं एवं अज्झामहेहिवि तिण्णि तणेहिपि तिपिण आलावगा, ओसहीहिंपि तिपिण, हरिएहिंपि तिपिण, उदगजोणिएहिं उदएहि अवरहि जाव पुक्खलच्छिभएहिं तसपाणत्ताए विउद्देति ॥ ते जीवा तेसिं पुढचीजोणियाणं उदगजोणियाणं रुक्खजोणियाणं अज्झारोहजोणियाणं तणजोणियाणं ओसहीजोणियाणं हरियजोणियाणं रुक्खाणं अजझा
||३४९॥
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