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________________ आगम (०२) “सूत्रकृत्” - अंगसूत्र-२ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) श्रुतस्कंध [२.], अध्ययन [२], उद्देशक [-], मूलं [३९], नियुक्ति: [१६८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[०२], अंग सूत्र-०२] “सुत्रकृत्” मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्तिः प्रत सूत्रांक सूत्रकृताओं २ श्रुतस्कन्धे शीलाकीयावृत्तिः ॥३३५॥ २ क्रियास्थानाध्य मिश्रे धर्मपक्षे श्रावकव० . [३९] दीप अनुक्रम [६७१] इणमेव निग्गंधे पावयणे णिस्संकिया णिकरिखया निवितिगिच्छा लट्ठा गहियट्ठा पुच्छियट्ठा विणिच्छियट्ठा अभिगयट्ठा अहिमिंजपेम्माणुरागरत्ता अयमाउसो! निग्गंथे पावयणे अट्टे अयं परमट्टे सेसे अणढे उसियफलिहा अचंगुयदुवारा अचियत्तंतेउरपरघरपवेसा चाउद्दसहमुद्दिवपुषिणमासिणीसु पडिपुन्नं पोसहं सम्म अणुपालेमाणा समणे निग्गंध फासुएसणिजेणं असणपाणखाइमसाइमेणं वत्थपटिग्गहकंघलपायपुंछणेणं ओसहभेसजेणं पीठफलगसेज्जासंथारएणं पडिलाभेमाणा बहहिं सीलचयगुणवेरमणपञ्चक्खाणपोसहोववासेहिं अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावमाणा विहरंति ॥ ते णं एपारवेणं विहारेणं विहरमाणा यहई वासाई समणोबासगपरियागं पाउणंति पाउणित्ता आवाहंसि उप्पन्नसि वा अणुप्पन्नंसि वा बहुई भत्ताई पञ्चक्खायंति बहई भत्ताई पञ्चक्खाएत्ता बहई भत्ताई अणसणाए छेदेन्ति पहुई भत्ताई अणसणाए छेत्ता आलोइयपडिकंता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोएसु देवसाए उबवत्तारो भवंति, तंजहा-महड्डिएमु महज्जुइएसु जाव महामुक्वेसु सेसं तहेव जाच एस ठाणे आयरिए जाव एगंतसम्म साह । तच्चस्स ठाणस्स मिस्सगस्स विभंगे एवं आहिए ॥ अविरई पहुच बाले आहिजइ, विरई पडुच्च पंडिए आहिजइ, विरयाविरई पडुच्च बालपंडिए आहिजइ, तत्थ णं जा सा सवतो अविरई एस ठाणे आरंभट्ठाणे अणारिए जाव असबदुवप्पहीणमग्गे एगंतमिच्छे असाह, तत्थ णं जा सा सवतो चिरई एस ठाणे अणारंभट्ठाणे आरिप जाव सबदुवप्पहीणमग्गे एगंतसम्म साह, तस्थ ॥३३५॥ ce ~674~
SR No.004102
Book TitleAagam 02 SOOTRAKUT Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages860
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size176 MB
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