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आगम
(०२)
प्रत
सूत्रांक
[३८]
दीप
अनुक्रम [६७०]
सूत्रकृताङ्गे
२ श्रुतस्क न्धे शीलाझीयावृत्तिः
॥३३३॥
“सूत्रकृत्” अंगसूत्र-२ (मूलं+निर्युक्तिः+वृत्तिः)
श्रुतस्कंध [२.], अध्ययन [ २ ], उद्देशक [-], मूलं [३८], निर्युक्ति: [ १६८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र -[०२], अंग सूत्र -[०२] “सुत्रकृत्” मूलं एवं शिलांकाचार्य कृत् वृत्तिः
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इ वा जनं जन्नं दिसं इच्छंति तनं तनं दिसं अपटिबद्धा सुइभूया लहुभूया अप्पगंधा संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति ॥ तेसिं णं भगवंताणं इमा एताख्या जायामायावित्ती होत्था, तंजाचत्थे भत्ते छुट्टे भन्ते अट्टमे भत्ते दसमे भत्ते दुवालसमे भन्ते चउदसमे भत्ते अद्धमासिए भत्ते मासिए भत्ते दोमासिए निमासिए चाउम्मासिए पंचमासिए छम्मासिए अनुत्तरं च णं उक्खित्तचरया णिक्खितरया वित्तणिक्खित्तचरगा अंतचरगा पंतचरगा लूहचरगा समुद्राणचरगा संसहचरगा असंसचरंगा तज्जातसंसट्टचरगा दिल्लाभिया अदिहलाभिया पुलाभिया अपुलाभिया भिक्खलाभिया अभिक्खलाभिया अन्नायचरगा उचनिहिया संखादत्तिया परिमितपिंडवाझ्या सुद्धेमणिया अंताहारा पंताहारा अरसाहारा विरसाहारा ढहाहारा तुच्छाहारा अंतजीवी पंतजीवी आयंबिलिया पुरिमडिया निधिगइया अज्जमंसासिणो णो नियामरसभोई ठाणाइया पडिमाठाणाइया उकटुआसणिया णेसज्जिया वीरामणिया गंडा अप्पाउडा अगत्तया अकंडया अणिहा] (एवं जहोववाइए) धुतके समंसुरोमनहा सङ्घगायपडिकम्मविप्पमुक्का चिर्हति ॥ ते णं एतेणं विहारेण विहरमाणा बहु वासाई सामन्नपरियागं पाउणति २ हुबहु आबाहंसि उत्पन्नंसि वा अणुप्पन्नंसि वा बहुई भत्ताई पञ्चक्खन्ति पथक्वाइता बहूई भत्ताई अणसणाए छेदिति अणसणाए छेदित्ता जस्सद्वाए कीरति नग्गभावे मुंडभावे अण्हाणभावे अदंतवणगे अछत्तए अणोवाहणए भूमिसेज्जा फलगसेज्जा कहसेज्जा केसलोए बंभचेरवासे परघरपवेसे लद्वा
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२ क्रिया
स्थानाच्य० धर्मपक्षव
न्तः
||३३३||