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________________ आगम (०२) प्रत सूत्रांक [३८] दीप अनुक्रम [६७०] “सूत्रकृत्” अंगसूत्र-२ (मूलं+निर्युक्तिः+वृत्तिः) श्रुतस्कंध [२.], अध्ययन [ २ ], उद्देशक [-], मूलं [३८], निर्युक्ति: [ १६८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र -[०२], अंग सूत्र -[०२] “सुत्रकृत्” मूलं एवं शिलांकाचार्य कृत् वृत्तिः Internationa - अहावरे दोचस्स ठाणस्स धम्मपक्स्वस्स विभंगे एवमाहिजइ-इह खलु पाइणं वा ४ संतेगतिया मनुस्सा भवति, तंजा - अणारंभा अपरिग्गहा धम्मिया धम्माणुया धम्मिट्ठा जाव धम्मेणं चैव वित्तिं कप्पेमाणा विरंति, सुसीला सुवा सुप्पटियाणंदा सुसाह सबतो पाणातिवायाओ पडिविरया जावजीवाए जाव जे यावन्ने तहप्पारा सावजा अथोहिया कम्मता परपाणपरियावणकरा कांति ततो विपडिविरता जाबजीवाए | से जहाणामए अणगारा भगवंतो ईरियासमिया भासासमिया एसणासमिया आयाणभंडमत्तणिक्खेवणासमिया उच्चारपासवणखेलसिंघाणजलपारि द्वावणियासमिया [मणसमिया वयसमिया कायसमिया मणगुत्ता वयगुत्ता कायगुत्ता गुत्ता गुत्तिंदिया गुत्तवं भयारी अकोहा अमाणा अमाया अलोभा संता पसंता उवसंता परिणिन्बुडा अणासवा अग्गंथा छिन्नसोया निरुबलेवा कंसपाइ व मुकतोया संखो इव णिरंजणा जीव इव अपडियगती गगणतलंपिव निरालंबणा बाउरिव अपडिबद्धा सारदसलिलं व सुद्धहिया पुक्खरपत्तं व निरुबलेवा कुम्मो इव गुसिंदिया बिहग इव विप्पभुक्का खग्गविसाणं व एगजाया भारंडपक्खीव अप्पमत्ता कुंजरो इव सोंडीरा वसभो इव जातत्थामा सीहो इव बुद्धरिसा मंदरो इव अप्पकंपा सागरो इव गंभीरा चंदो इव सोमलेसा सूरो इव दिसतेया जबकंचणगं व जातरूवा वसुंधरा इव सबफासविसहा सुहयहुयासणो विव तेयसा जलता ॥ णत्थि णं तेसिं भगवंताणं कत्थवि पडिषेधे भवइ, से पडिबंधे चडविहे पण्णत्ते, तंजहा- अंडए इ वा पोयए इ वा उग्गहे इ वा पग्गहे For Parts Only ~669~ ९९९९ waryra
SR No.004102
Book TitleAagam 02 SOOTRAKUT Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages860
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size176 MB
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