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आगम
“सूत्रकृत्” - अंगसूत्र-२ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्तिः ) श्रुतस्कंध [२.], अध्ययन [१], उद्देशक [-], मूलं [१३], नियुक्ति: [१५७]
(०२)
प्रत
सूत्रांक
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[१३]
सिलप्पवालरत्तरयणसंतसारसावतेयं मेसहा मे स्वा मे गंधा मे रसा मे फासा मे, एते खलु मे कामभोगा अहमवि एतेसि ॥ से मेहाची पुवामेव अप्पणो एवं समभिजाणेजा, तंजहा-इह खलु मम अन्नयरे दुक्खे रोयातके समुप्पजेजा अणि? अकंते अप्पिए असुभे अमणुन्ने अमणामे दुक्खे णो सुहे से इंता भयंता. रो! कामभोगाई मम अन्नयर दुक्खं रोयातंक परियाइयह अणिर्ट अकंतं अप्पियं असुभ अमणुन्नं अमणाम दुक्खं णो सुह, ताऽहं दुक्खामि वा सोयामि वा जूरामि वा तिप्पामि वा पीडामि वा परितप्पामि वा इमाओ मे अण्णयराओ दुक्खाओ रोगातंकाओ पडिमोयह अणिट्टाओ अकंताओ अप्पियाओ असुभाओ अमणुन्नाओ अमणामाओ दुक्खाओ णो सुहाओ, एवामेव णो लद्धपुर भवइ, इह खलु कामभोगा णो ताणाए वा णो सरणाए वा, पुरिसे वा एगता पुर्वि कामभोगे विप्पजहति, कामभोगा वा एगता पुर्वि पुरिसं विप्पजहंति, अन्ने खल्लु कामभोगा अन्नो अहमंसि, से किमंग पुण वयं अन्नमन्नेहि कामभोगेहिं मुच्छामो? इति संखाए णं वयं च कामभोगेहिं विप्पजहिस्सामो, से मेहाची जाणेजा बहिरंगमेतं, इणमेव उवणीयतरागं, तंजहा-माया मे पिता मे भाया मे भगिणी मे भज्जा मे पुत्ता मे धूता मे पेसा मे नत्ता मे मुण्हा मे सुहा मे पिया मे सहा मे सयणसंगंथसंथुया मे, एते खलु मम णायओ अहमवि एतेसिं, एवं से मेहावी पुषामेव अप्पणा एवं समभिजाणेजा, इह खलु मम अन्नयरे दुक्खे रोयातके समुप्पज्जेज्जा अणिढे जाव दुक्खे णो सुहे, से हंता भयंतारो ! णायओ इमं मम अन्नयरं दुक्खं रोयातंक परि
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दीप अनुक्रम [६४५]
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मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[२], अंग सूत्र-[०२] "सुत्रकृत" मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति:
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