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________________ आगम (०२) प्रत सूत्रांक [१३] दीप अनुक्रम [६४५] सूत्रकृताङ्गे २ श्रुतस्क न्धे शीलाकीयावृत्तिः ॥२९१ ॥ Education intemational “सूत्रकृत्” - अंगसूत्र-२ (मूलं+निर्युक्तिः+वृत्तिः) श्रुतस्कंध [२.], अध्ययन [१], उद्देशक [-], मूलं [१३], निर्युक्ति: [१५७] याइयह अणि जाव णो सुहं, ताऽहं दुक्खामि वा सोयामि वा जाव परितप्यामि वा इमाओ मे अन्नयरातो दुक्खातो यातंकाओ परिमोएह अणिट्ठाओ जाव णो सुहाओ, एवमेव णो लद्धपुत्रं भवइ, तेसिं वाचि भयंताराणं मम गाययाणं अन्नयरे दुक्खे रोयातंके समुपज्जेज्जा अणिट्टे जाव णो सुहे, से हंता अहमेतेसिं भयंताराणं णाययाणं इमं अन्नयरं दुक्खं रोयातंकं परियाइयामि अहिं जाव णो सुहे, मा मे दुक्खंतु वा जाव मा मे परितप्पंतु वा, हमाओ णं अण्णयराओ दुक्खातो रोपातकाओं परिमोएमि अबिहाओ जाव णो सुहाओ, एवमेव णो लद्धपुषं भवइ, अन्नस्स दुक्खं अन्नो न परियाइयति अन्नेण कडं अन्नो नो डिसंवेदेति पत्तेयं जायति पत्तेयं मरइ पत्तेयं चयइ पत्तेयं उववज्जइ पत्तेयं झंझा पत्तेयं सन्ना पत्तेयं मन्ना एवं विनू वेदणा, इह (इ) खलु णातिसंजोगा णो ताणाए वा णो सरणाए वा पुरिसे वागत पु िणातिसंजोए विप्पजहति, णातिसंजोगा वा एगता पुष्विं पुरिसं विप्पजहंति, अन्ने खलु णातिसंजोगा अन्नो अहमंसि, से किमंग पुण वयं अन्नमन्नेहिं णातिसंजोगेहिं मुच्छामो ?, इति संखाए णं वयं णातिसंजोगं विष्पजहिस्सामो से मेहावी जाणेजा बहिरंगमेयं, इणमेव उवणीयतरागं, तंजहाहत्था में पाया मे बाहा मे ऊरू मे उदरं मे सीसं मे सीलं मे आऊ में बलं मे वण्णो मे तया मे छाया मे सोयं मे च मे घाणं मे जिन्भा में फासा मे ममाइजर, बयाड पडिजूरइ, तंजहा- आओ बलाओ वण्णाओ तयाओ छायाओ सोयाओ जाव फासाओ सुसंधितो संधी सिंधीभवर, बलियतरंगे गाए For Fans Only मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ...... आगमसूत्र [०२], अंग सूत्र [०२] “सुत्रकृत्” मूलं एवं शिलांकाचार्य कृत् वृत्तिः ~ 586~ पुण्डरी काव्य० 9. भिक्षुःपञ्च मः वैराग्यस्वरूपं ॥२९१ ॥ www.ncbrary.org
SR No.004102
Book TitleAagam 02 SOOTRAKUT Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages860
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size176 MB
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