SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 544
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (०२) प्रत सूत्रांक [3] दीप अनुक्रम [६३३] “सूत्रकृत्” अंगसूत्र-२ (मूलं+निर्युक्तिः+वृत्तिः) श्रुतस्कंध [२.], अध्ययन [ १ ], उद्देशक [-], मूलं [१], निर्युक्ति: [१५७] - | पौण्डरीकस्य निक्षेपं प्रदर्श्याधुनेह येनाधिकारस्तमाविर्भावयबाह – 'अत्र' पुनर्दृष्टान्तप्रस्तावे 'अधिकारी' व्यापारः सचित्ततिर्यग्योनिकै केन्द्रियवनस्पतिकायद्रव्यपौण्डरीकेण जलरुहेण, यदिवा औदधिकभाववर्तिना वनस्पतिकायपौण्डरीकेण सितशतपत्रेण, तथा भावे 'श्रमणेन च' सम्यग्दर्शनचारित्र विनयाध्यात्मवर्तिना सत्साधुनाऽस्मिन्नध्ययने पौण्डरीकाख्येऽधिकार इति । गता निक्षेपनियुक्तिः, अधुना सूत्रस्पर्शिकनिर्युक्तेरवसरः, सा च सूत्रे सति भवति, सूत्रं च सूत्रानुगमे, स चावसरप्राप्तोऽतोऽस्खलितादिगुणोपेतं सूत्रमुचारयितव्यं तवेदं--- Education intol सुगं मे आउसंतेण भगवया एवमक्वायं-इह खलु पोंडरीए णामायणे, तस्स णं अयमट्ठे पण्णत्ते-से जहाणाम पुक्खरिणी सिया बहुउद्गा बहुसेया बहुपुक्खला लट्ठा पुंडरिकिणी पासादिया दरिसणिया अभिरुवा पडिवा, तीसे णं पुक्खरिणीए तत्थ तत्थ देसे देसे तहिं तहि बहवे पडमवरपोंडरीया बुझ्या, अणुपुच्छुट्टिया ऊसिया रुइला वण्णमंता गंधमंता रसमता फासमंता पासादिया दरिसणिया अभिरुवा पडिवा, तीसे णं पुक्खरिणीए बहुमज्झदेसभाए एगे महं पउमवरपोंडरी बुझ्ए, अणुपुव्वुद्विए उस्सिते रुले वनमंते गंधमंते रसमंते फासमंते पासादीए जाव पडिरूवे । सव्वावति च णं तीसे क्खरिणीए तत्थ तत्थ देसे देसे तर्हि तर्हि बहवे पउमवरपोंडरीया बुझ्या अणुपुछुट्टिया ऊसिया रुहला जाव पडिवा, सव्वावति च णं तीसे णं पुक्खरिणीए बहुमज्झदेसभाए एवं महं परमवरपोंडरीए बहुए अणुपुब्बुट्ठिए जाव पडिब्वे ॥ १ ॥ अह पुरिसे पुरित्थिमाओ दिसाओ आगम्म तं पुंक्खरिणीं तीसे For Fasten मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ..... आगमसूत्र [०२ ], अंग सूत्र- [ ०२] “सुत्रकृत्” मूलं एवं शिलांकाचार्य कृत् वृत्तिः मूल- सूत्रस्य आरम्भः एते अध्ययने सर्व-सूत्राणि मध्यबद्धः सन्ति, गाथा व पध्यरूपेण न किंचित् अस्ति. ~ 543~ www.ncbrary.org
SR No.004102
Book TitleAagam 02 SOOTRAKUT Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages860
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size176 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy