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________________ देवीदास - विलास ३. चर्मरत्न — यह बज्रमय रत्न सैन्यादिकों को नद और नदी से पार करा देने में समर्थ होता था। ५० ४. चूड़ामणिरत्न इच्छित पदार्थों को प्रदान करने वाला था । ५. चिंतामणिकाकिनीरत्न गुफाओं के अन्धकार को दूर करके चन्द्रमा के समान प्रकाश प्रदान करने वाला होता था । ६. सूर्यप्रभछत्ररत्न सूर्य के समान जगमगाने वाला यह रत्न सैन्यदल के ऊपर आई हुई बाधाओं को दूर करने में समर्थ था । ७. सौनन्दक - असि - रत्न सौनन्दक नामकी दैदीप्यमान श्रेष्ठ तलवार, जिसे हाथ में लेते ही समस्त संसार झूले में बैठे हुए के सदृश कम्पायमान हो उठता था । ८. अयोध्यसेनापति- रत्न अयोध्य नामक सेनानायक, जो मनुष्य रत्न था । युद्ध में शत्रुओं को जीतने में जिसका यश आकाश और पृथिवी के बीच व्याप्तं हो जाता था । ९. बुद्धिसागर - पुरोहित - रत्न जो धार्मिक अनुष्ठान पूर्वक मार्गदर्शन कराने वाला एवं सर्वविद्याकुशल होता था । १०. कामवृष्टि - गृहपति - रत्न अत्यन्त बुद्धिमान एवं इच्छानुसार सामग्री देने वाला एवं चक्रवर्ती के सभी खर्चों का हिसाब रखने में कुशल होता था । ११. भद्रमुख- रत्न राजभवन, प्रासाद, मन्दिर आदि शिल्प-कला में निपुण इन्जीनियर होता था । १२. विजयगिरि - हाथी - रत्न - विजयपर्वत नामका सफेद हाथी, जो शत्रुदल की गज - घटाओं का विघटन करने वाला होता था । १३. पवनंजय घोड़ा - रत्न- तीव्र वेग एवं शक्तिशाली पवनंजय नामका घोड़ा उसके साथ रहता था । १४. सुभद्रा - स्त्री- रत्न- रसायन के समान हृदय को आनन्द देने वाली सुभद्रा नामकस्त्री - रत्न थी, जो चक्रवर्त्ती की ९६ हजार रानियों में सर्वश्रेष्ठ पटरानी होती थी । इस प्रकार १४ रत्नों से युक्त चक्रवर्त्ती समस्त ऐश्वर्य और शक्ति का उपभोग करता था। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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