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________________ देवीदास-विलास इसी प्रकार जो लोग रागद्वेष, एवं मिथ्यात्व से युक्त होकर शास्त्रों का अध्ययन करता है, उसे शास्त्रमूढ़ता कहा जाता है। यथा "प्रगट चराचर ग्रंथन घोकौ सो परोक्ष श्रुत मूढ़ विलोकौ। पढे आपु औरनि सुपढ़ावै परख रहित कुछ भेद न पावै। वाहिज कथन कथत बहुतेरौ सो प्रतच्छ श्रुत मूढ़ वसेरौ।'' (पद्य २८-२९) .. अन्त में बतलाया गया है कि जो भी मनुष्य इन तीनों मूढ़ताओं का त्याग कर देता है, वही सम्यक्त्व रूपी भव्य महल को अपना निवास-स्थल बना लेता है। रचना के अन्त में कवि ने अपनी विनम्रता प्रदर्शित करते हुए कहा है किमेरे पास न तो कोई कला है, न अर्थ है और न ही छन्द-विधान। शैली के बिना मेरी गति और मति मैली हो गई है। अतः मेरे इस काव्य में यदि अर्थ की कोई कमी हो या छन्दों में मात्रा की न्यूनता या अधिकता हो, तो विद्वत्-पाठक उसमें संशोधन कर लें। यथा “कान मात पद अरथ घटि धरि लीजौ बुध और।" ग्रन्थ अरथ छवि छन्द की मूरति कला न पास। सैली बिनु मैली भई गति मति देवियदास।। कवि की यह गर्वहीन उक्ति आदर्श एवं प्रशंसनीय है। (२/१६) बुद्धि-बाउनी . प्रस्तुत रचना में कुल ५५ पद्य हैं। कवि ने प्रत्येक छन्द के पूरक के रूप में एक-एक दोहरा-छन्द का भी संयोजन किया है। यह रचना ज्ञान की दृष्टि से जितनी महत्वपूर्ण है, अभिव्यंजना की दृष्टि से भी उतनी ही महत्वपूर्ण। उक्त रचना से कवि के कला-कौशल का भी परिचय मिल जाता है। इसमें उसने सवैया-तेईसा के अतिरिक्त छप्पय कमलबन्ध, दोहरा-कटार बंध, कवित्त-गतागत, दोहरा-तुकगुपत जैसे छन्दों का भी प्रयोग किया है, जो नामानुकूल चित्रों में बँधे हुए हैं और नटों जैसी अठखेलियाँ करते प्रतीत होते है। उलट-पुलट कर उन्हें पढ़कर उनसे विशेष आनन्द उठाया जा सकता है। - इसकी रचना-शैली प्रश्नोत्तरी की है। गुरु और शिष्य के प्रश्न-उत्तरों के माध्यम से इस रचना में ज्ञान के गूढ़-विषयों का उद्घाटन किया गया है। कवि ने तीनों कालों के तीर्थंकरों की वन्दना करके इस रचना का प्रारम्भ किया है। ज्ञान की महिमा का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि ज्ञान के द्वारा ही शिवत्व Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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