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________________ प्रस्तावना "बेरहि बेर पुकारत हौं जन की बिनती सुनिए जिनराई । ' (२/९) वीतराग पच्चीसी पच्चीस सवैया - पद्यों में समाप्त होने वाली कवि की यह एक प्रभावक लघु रचना है, जिसमें उसने वीतराग भावों का सरस और सजीव चित्रण किया है। कवि के ये सवैया पद्य बड़े ही रोचक, मनोहर और अन्तस्तल में प्रविष्ट हो जाने वाले हैं। कवि ने व्यक्तिगत रूप से जीवन की निस्सारता का अनुभव किया था और इस दुखद निस्सारता से छुटकारा पाने के लिए उसने केवल एक ही उपाय बतलाया है— वीतराग तत्व की प्राप्ति । मानव-जीवन में विरक्ति-भाव को प्राप्त करना अत्यन्त कठिन माना गया है, इसीलिए कवि ने अनेक दृष्टान्तों के द्वारा वीतराग भावना को जागृत करने का विधान भी बतलाया है तथा जीवन के विकास के लिए इसे परमावश्यक भी माना है। कवि का विचार है कि विश्व में फैली हुई मानव-मन की कलुषता या प्रतिद्वन्द्विता की समाप्ति का एक मात्र समाधान वीतरागता ही है। उक्त मर्मस्पर्शी दार्शनिक रचना में चेतन - आत्मा की तीन अवस्थाएँ बतलाई गई हैं— ३९ १. अशुभ २. शुभ, और ३. शुद्ध । राग- -दोष, विषय-कषाय एवं अज्ञाननिद्रा में निमग्न होकर यह आत्मा अशुद्धोपयोगी होकर नरक एवं तिर्यंच-योनि में भटकती रहती है। किन्तु सांसारिक स्वार्थपरता और रागात्मक मोह - सम्बन्धों का परित्याग कर देने से वह शुभोपयोगी हो जाती है। शुभोपयोगी जीव अरहन्त - पद को प्राप्त करके शुद्धोपयोग के द्वारा सिद्धपद प्राप्त करता है । इन रूपों को सिद्ध करने के लिए कवि ने उदाहरण- अलंकार का आश्रय लिया है और मार्मिक दृष्टान्तों द्वारा उन्हें सुस्पष्ट किया है। इसी प्रकरण में कवि ने सम्यक्भाव, पाप-पुण्य, राग-द्वेष, क्षायिक ज्ञान, व्यवहारनय, निश्चयनय आदि सैद्धान्तिक तत्वों का निरूपण भी सरस एवं हृदयग्राही ढंग से किया है। कवि ने वीतराग- पच्चीसी की रचना के प्रेरक - प्रकरणों का भी उल्लेख किया है। उसने “प्रवचनसार" एवं उसकी बालबोध टीका से प्रेरणा लेकर इस रचना कों लिखा है। (२/१०) उपदेश पच्चीसी `इसकी रचना २५ दोहरा - छंदों में की गई है । कवि ने इसमें श्लेषात्मक शैली का प्रयोग किया है। पारिवारिक सम्बन्धों के माध्यम से उपदेश देने की कवि की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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