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देवीदास-विलास - इस प्रकार कवि ने स्वयं ही उक्त ग्रन्थ को चरणानुयोग का खजाना माना है। (ग) चिद्विलासवचनिका
कवि की तीसरी रचना चिद्विलास-वचनिका है। इस रचना का मात्र उल्लेख ही प्राप्त होता है। यह रचना आज तक न तो हस्तगत ही हो सकी है और न ही उसके सम्बन्ध में कोई विशेष जानकारी प्राप्त हो पाई है। अतः इसके सम्बन्ध में कुछ भी लिख पाना सम्भव नहीं। (घ) चौबीसी पूजा-पाठ आदि ____कवि की चौथी रचना चौबीसी-पाठ है। इसका प्रकाशन सन् १९७१ में द्रोणगिरि से “श्री वर्तमान चतुर्विशति-जिन-पूजा मण्डल-विधान' के नाम से हो चुका है। इसमें चतुर्विशति-जिन पूजा, अंगपूजा, अष्टप्रातिहार्यपूजा, अनन्तचतुष्टयपूजा, अष्टादश दोष रहित जिनपूजा, चतुर्विशति-जिन स्तुति, जन्म के दस अतिशय, केवलज्ञान के दस अतिशय एवं देवकृत चौदह अतिशय का वर्णन अत्यन्त सरल एवं सरस भाषा-शैली में किया गया है।
इस रचना की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें कवि ने अन्त्यप्रशस्ति में अपना संक्षिप्त जीवन-वृत्त प्रस्तुत किया है, जिससे कवि के जीवन-वृत्त के लेखन में कुछ सहायता मिल जाती है।
. देवीदास-विलास की अन्य रचनाओं का संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है :• (१/१) परमानन्द स्तोत्र
प्रस्तुत रचना अकलंकदेव द्वारा संस्कृत-भाषा में रचित परमानन्द स्तोत्र का हिन्दी पद्यानुवाद है। इसकी २४ चौपाइयाँ तो अनुवाद की है एवं अंतिम ६ दोहे कवि ने स्वयं ही सृजित किए हैं। कवि की यह रचना बड़ी ही सरस एवं मार्मिक है। कवि ने इसका प्रारम्भ दोहरे नामक छन्द से किया है और बीच में २२ चौपाइयों में आत्मतत्व को विभिन्न उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया है। अन्त में कवि ने पनः दोहराछन्द का प्रयोग किया है। यह रचना आत्म-रहस्य और अध्यात्म-तत्व से आप्लावित १. हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास, पृ. ८१ २. श्रीवर्तमान चतुर्विशतिजिनपूजामण्डलविधान, सम्पा.-पं. मोतीलाल, द्रोणगिरि
सन् १९७१। इसकी प्रकाशित प्रति को उपलब्ध कराने के लिए मैं डॉ. कमलकुमारजी जैन छतरपुर एवं डॉ. ऋषभचन्द्र जी फौजदार आरा के प्रति विशेष आभार व्यक्त करती हूँ।
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