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________________ प्रस्तावना देवी अति-मति-मंद पुनि कहिवै कौं असमर्थ । बुद्धिवंत धरि लीजियो जह अनर्थ करि अर्थ | | गुरुमुख ग्रंथ सुन्यौ नहीं मुन्यौ जथावत आप । । " द्वादश., २/४/४७-४८ उक्त प्रसंगों से यह ध्यातव्य है कि अपने को मन्द बुद्धि, अल्पमति, अल्पज्ञ एवं काव्य-शक्तिहीन कहकर कवि के आत्म-परिचय की प्रवृत्ति प्राचीन परम्परा से ही चली आ रही है। संस्कृत, अपभ्रंश एवं हिन्दी के अधिकतर जैन कवियों ने इस शैली का प्रयोग किया है। जैनेतर अपभ्रंश एवं हिन्दी साहित्य में भी यह प्रवृत्ति प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है । यथा— २३ "ताणणुकईण अम्हारिसाण सुईसद्दसत्थरहियाण। लक्खणछन्दपमुक्कं कुकवित्तं को पसंसेई ।। " सन्देश., १/७ "कोऊहलि भासिअउ सरलभाइ संनेहरासर । तं जाणिवि णिमिसिद्धु खणु बुहयण करिवि सणेह । " सन्देश., पामरजणथूलक्खरिहिं जं । " कवि न होऊँ नहिँ वचन प्रवीनू सकल कला सब विद्याहीनू । आखर अरथ अलंकृति नाना छंद प्रबंध अनेक विधाना। कवित्त विवेक एक नहिँ मोरे सत्य कहहूँ लिखि कागद कोरे । मानस., पृ. १२ (घ) कवि के जीवन की कुछ प्रेरक एवं मार्मिक घटनाएँ.. कवि के जीवन में अनेक मार्मिक घटनाएँ घटित हुई थीं, जिनसे उनकी समरसता, सच्चरित्रता, निर्भीकता, आत्म- दृढ़ता एवं मितव्ययता आदि की जानकारी मिलती है। उनकी ये घटनाएँ भले ही लिखित रूप में कहीं उपलब्ध न हों, किन्तु परम्परा प्राप्त किंवदन्तियों के रूप में और उनके साधना स्थल दुगौड़ा ग्राम में आज भी गूँज रही हैं। उनमें से कुछ प्रमुख प्रेरक घटनाओं को यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है - Jain Education International १/१९ (१) समरसता जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है, कवि की आजीविका का प्रमुख साधन कपड़े का छोटा सा व्यापार था। वह बंजी करके अपने परिवार का भरण-पोषण किया करते थे। गार्हस्थिक-जीवन में उनके परिवार में कुछ ऐसी असाधारण घटनाएँ भी घटित हुई थीं, जिनसे उनके जीवन की दृढ़ता, सच्चरित्रता एवं आत्म-संयम की कठोर परीक्षा हुई और उसमें वे खरे भी उतरे। इन कारणों से तत्कालीन साहित्यिकों एवं सामाजिकों में उनकी बड़ी प्रतिष्ठा बढ़ी | For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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