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________________ प्रस्तावना "तुरत भजौ जिनराज जो सुख चाहत जग मैं। जा सम और नहीं पुनि दूजौ देव गरीबनवाज। जो सर्वज्ञ निवाहनहारे सरनागति की लाज।। पद ४/ख/१७ “या विनती सुन सेवक की निज मारग से प्रभु देउ लगाई। हौं तुम दास रहौं तुम्हरे संग लाज करौ सरनागत आई पुकार।। २।८/२ "प्रभु तुम दीनानाथ हौ मैं अनाथ दुख कंद।। सुनि सेवक की बीनती हरौ जगत दुख फंद।। पुकार; २/८/६ वस्तुतः कवि देवीदास के समय में सख्य एवं दास-भक्ति का युग चल रहा था। जैनेतर कवियों ने तो उस भक्ति-भावना से भक्ति-साहित्य रचा ही, हिन्दी के जैन कवियों ने भी दास भक्ति के गीत गाए। (ख) कवि का अध्यात्म-रसिक-रूप भक्ति का कोई न कोई आधार अवश्य होता है। आत्मा को आधार मानकर जो भक्ति की जाती है, उसे आध्यात्मिक-भक्ति कहते हैं। कवि देवीदास अध्यात्मवाद के प्रबल समर्थक थे। वे स्वयं न तो तपस्वी थे, न योगी, और न ध्यानी, फिर भी वे आत्म-रस का स्वाद चखने वाले अध्यात्मी-भक्त अवश्य थे। यथा आतम रस अति मीठौ साधो आतम रस-अति मीठौ।। पद; ४/ख/२० उन्हें आत्म-रस की प्राप्ति के लिए अपने मन को हठयोगियों की भाँति ब्रह्मरन्ध्र पर केन्द्रित नहीं करना पड़ा। वे तो अनुभूति के माध्यम से मन की आन्तरिक स्थिति तक पहुंच गए और उन्होंने भक्ति के द्वारा भावोन्मेष के साँचे में अध्यात्म को ढाल दिया और इस प्रकार भक्ति और अध्यात्म को सन्निकट ला दिया। इस प्रकार देवीदास भक्ति और अध्यात्म का सुन्दर समन्वय करने वाले हिन्दी के एक सिद्धहस्त कवि के रूप में दिखलाई पड़ते हैं। वे केवल भक्त या कवि ही नहीं थे, अपितु अध्यात्म-रस की मंदाकिनी में आकण्ठ निमग्न रहने वाले भी थे। उन्होंने अध्यात्म सम्बन्धी शास्त्रों का जो अध्ययन एवं मनन किया, उसे विवेकपूर्वक अपने हृदय में उतारने का भी प्रयास किया। इष्ट-वियोग एवं अनिष्ट-संयोग में निरन्तर रहने की उनकी प्रवृत्ति काव्य में भी दृष्टव्य है। कर्मोदय की गति को वे पूरी तरह जानते समझते थे। इसलिए सभी प्रकार की परिस्थितियों में वे समताभाव बनाए रखते थे। उन्होंने स्वानुभूति के द्वारा आत्म-तत्व को भली-भाँति समझा था। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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