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देवीदास - विलास
उन्होंने ग्रन्थकार-प्रशस्ति में अपनी जाति एवं वंश का स्पष्ट उल्लेख किया है। तदनुसार उनकी जाति गोलालारे अर्थात् गोलाराड थीं, वंश खरौआ, गोत्र कासिल्ल एवं बैंक अथवा मूल सोनवयार था। टीकमगढ़, ललितपुर, ग्वालियर, झाँसी, इन्दौर, सागर, दिल्ली, भोपाल जिलों में आज भी इस जाति एवं वंश के लोग विद्यमान हैं। यह ८४ जातियों में से एक प्रमुख जैन जाति मानी जाती है'।
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(घ) जन्म एवं निवास-स्थल
कवि देवीदास ने अपने जन्म-स्थान के सम्बन्ध में स्पष्ट बतलाया है कि उनका जन्म कैलागमाँ (जिला टीकमगढ़, मध्यप्रदेश का एक ग्राम) नामक स्थान पर हुआ था। तत्पश्चात् वे दिगौड़ा ग्राम में आकर रहने लगे थे। यद्यपि उनके पूर्वज “भदावरदेश के (तत्कालीन गोपाचल - ग्वालियर राज्य में स्थित ) सीकसिकहारा ग्राम के निवासी थे। बाद में किन्हीं कारणों से उनके पिता कैलागमाँ आकर बस गए थे 1
यथा—
" पुनि कासिल्ल सुगोत्र सीकसिकहारा खैरो ।
देस भदावर माँहि जो सुन रचौ तिन भैरो ।।
कैलागमा के बसनहार संतोस सुभारे ।
देवीदास सुपुत्र दिगौड़ा गोलालारे । । ” – चतुर्विंशति., पृ. १५७
“सीकसिकहारा” का शाब्दिक अर्थ होता है— सी = श्री अर्थात् समृद्धि और कसिकहारा अर्थात् कृषि को धारण करने वाला अर्थात् समृद्ध खेती वाला गाँव। इससे प्रतीत होता है कि इस गाँव के निवासी किसान थे और पूर्ण रूप से खेती पर आश्रित तथा सम्पन्न थे। यही कारण रहा होगा कि इस ग्राम का नाम "सीकसिकहारा” पड़ गया। इसी प्रसंग में कवि यह लिखना भी नहीं भूलता कि यह जानकारी मैने अपने परिवार से प्राप्त की है, इसीलिए इसका उल्लेख कर रहा हूँ। कवि ने गाँव के लिए "खैरौ” शब्द का प्रयोग किया है। यह बुन्देलखण्डीभाषा का शब्द है, जो आज भी इसी रूप में प्रयुक्त होता है। इसकी व्युत्पत्ति "खेट" या खेड शब्द से हुई है। प्राचीन भूगोल के अनुसार पर्वत एवं नदी के बीच में बसने वाला स्थल खेट या खेड कहलाता था ।
१. बुन्देलखण्ड का संक्षिप्त इतिहास, (लेखक - गोरेलाल तिवारी), काशी नागरी प्रचारिणी सभा, वि. सं. १९९० पृ. १५५
२. दे. चक्रवर्ती. प्रकरण.
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