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प्रस्तावना
१८३० तक ५० वर्ष तक का निर्धारित किया जा सकता है। अतः जब तक उसके जीवन-काल सम्बन्धी अन्य साक्ष्य उपलब्ध नहीं हो जाते, तब तक कवि का कुल जीवन काल वि. सं. १७८० से १८३० तक मानने में कोई हानि नहीं। (ग) वंश-परम्परा
देवीदास की “प्रवचनसार' नामक रचना के अनुसार उनके पिता का नाम संतोष एवं माता का नाम मणि था। देवीदास की एक बहिन और सात भाई थे। बहिन का नाम सेली था। भाईयों के नाम इस प्रकार थे
१. देवीदास २. छगन ३. लल्ले, ४. मरजाद, ५. गंगाराम, ६ गोपाल और ७. कमल। इसका उल्लेख उन्होंने अपनी ग्रन्थकार-प्रशस्ति में स्वयं किया है।
ये सभी भाई एक साथ नहीं रहते थे। कवि के कथनानुसार छगन शिवपुरी में (छिपुरी), लल्ले ललितपुर में कमल कारी (टीकमगढ़ के पास) में मरजाद एवं गंगाराम टिहरी (टीकमगढ़) में तथा देवीदास एवं गोपाल दिगौड़ा में रहते थे, व्यापारिक कारणों से ही सम्भवतः इन भाईयों को अलग-अलग रहना पड़ा था।
कवि ने भाइयों के व्यक्तित्व अथवा कृतित्व के सम्बन्ध में कहीं कोई उल्लेख नहीं किया है। केवल उनकी संख्या, नाम एवं निवास स्थान का ही विवरण दिया है। परन्तु उक्त पंक्तियों से यह अवश्य ज्ञात हो जाता है, कि सभी भाईयों के प्रति देवीदास का प्रगाढ़-स्नेह था और अपने भाईयों के आग्रह पर उन्होंने कई रचनाएँ भी लिखी थी। १. “दुगौड़ो सु ग्रांम जामै जैनी की धुकार है, तहाँ के सुवासी संतोष मनि सुगोलालारे। खरौवा सुवंश जाके धर्म विवहार है, तिनही के सुपुत्र देवीदास तिन्ही पूरी करै,
ग्रन्थ यह नाम जाको प्रवचनसार है।।" (दे. णाणसायर पत्रिका, २/६३) २. “सेली के सहकारी भाई,
छिपुरी छगन ललितपुर लल्ले, कारी कमल बसत मन भायें, टिहरी में मरजाद तथा पुनि, गंगाराम बसत तिन भाये। देवीदास गुपाल दिगौडे उदै कवित्त कला के गाए।। भाषा करि जिनेश्वर पूजा छहौं वीर की आज्ञा पाए।।
(दे. वर्तमान चतुर्विंशति पूजा-प्रशस्ति)
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