________________
३१८
सुलै अष्ट विधि द्रव्य जो चन्दनादिक करो एक भाजन विषै अध ठीकौ । उभै नेमिजिनके सुपद कंज पूजौं
लियौ भार तिन आप शिर धरि जती कौ । तजीरूपभा० ।। १० ।। ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
देवीदास-विलास
गीतिका
हम निरख जिन प्रतिबिम्ब पूजत त्रिविध करि गुण थापना । जिनके न कारज काज निज कल्याण हेत सुआपना । ।
जैसे किसान करै जु खेती नाँहि नरपति कारनैं ।
अपनौं सु निज परिवार पालन कौ जु कारज सारनै । पूर्णार्थं । । ११ । ।
जयमाल
दोहा
राजमती तजकै भए नेमिजतीसुर वाल ।
मति माफक तिनि की कहौं भाषाकरि जयमाल ।। १२ ।।
नाम नगरी महां धन्य द्वारावती,
नृप समुद विजय जहँ परम उत्तमगती । । १२ ।।
जासु रानी सु शिवदेवि वहुगुण भणी, कूख अवतार लीनौ, सुत्रिभुअन धनी ।। १३ ।। छोड़ करके विमान सु अपराजतै, छट सुकातिक सुदि सुखसौ उपजो पित सुदि सु वैसाख तेरस सु नव - मासमें, जन्म तिनिक सुचित्रानखत तास में । । आखल सहस इक वरस आगमधरी, तीनसै वरष तिनकी सुकुँवरावरी । राज कीनों नहीं, तप सो हिरदैं धरो, षष्टमी सुदि सु सावन महां दिन खरो ।। १५ ।।
।। १४ ।।
सातवें वरष थिति सेव तप में करी,
भूप इकसहस संयुक्त दीक्षा लई ।
अति संग सव परिहरैं, वृक्ष तसु नाममें है सुसिंगी तरै ।। १६ ।।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org