________________
चतुर्विशंतिजिन एवं अन्य पूजा-साहित्य-खण्ड
३१७
सुधे शालि अच्छित सुधीताहि अच्छित। अवीधे अखंडित सुलै हर्ष हीको। उभे नेमिजिनके सपद कंज पूजौं,
लियौ भार तिन आप शिर धर जतीको।तजीरूपभा.।।४।। ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्रभ्यो अक्षयपदप्राप्तये अक्षतनिर्वपामीति स्वाहा।
सुमन सेतजीको कमल केतकी कौ, सुवासीक सुन्दर वरण सोंन की को। उभै नेमिजिनके सुपद कंज पूजों,
लियौ भार तिन आय सिर धर जतीको। तजीरूपभा.।।५।। ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्रेभ्यो कामवाणविध्वंशनाय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा।
धरो मिष्ट मेवा महा जोग्य जेवा, सु लै अन्य शोधौ पको सुद्ध घीको। उभै नेमिजिनके सुपद कंज पूजौ,
लियौ भार तिन आय शिरधर जतीकौ।तजीरूपभा.।।६।। : ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्रभ्यो क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
दियौ घृत सुवाती ज्वलन ज्योति लाती, महातम सुघाती उदय जासु नीको। उभे नेमिजिनके सुपद कंज पूजौं,
लियौ भार तिन आय शिर धर जतीको। तजीरूपभा.।।७।। ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्रेभ्यो मोहान्धकारविनाशनाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा।
सुगन्धीक धरकै भली वस्तु करिकैं, लता पेड़ पल्लव नहीं जास रीको। उभै नेमिजिनके सु पद कंज पूजौं,
लियौ भार तिन आय शिरधर जतीको। तजीरूपभा.।।८।। ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्रेभ्यो अष्टकर्मदहनाय धूपम् निर्वपामीति स्वाही।
सु जे फल अदोखेसहीसार सूखे लवंगादि के थार भर लाइचीको उभै नेमिजिनके सुपद कंज पूजौं
लियौभार तिन आप शिर धर जतीको। तजीरूपभा.।।९।। ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्रेभ्यो मोक्षफलप्राप्ताय फलम् निर्वपामीति स्वाहा।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org