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देवीदास-विलास
गीतिका विधि पूर्व जो जिनबिम्ब पूजत द्रव्य अरु पुन भावसौं। अति पुण्य की तिनके सुप्रापत होय दीरघ आवसौं।। जाके सुफल कर पुत्र धन-धान्यादि देह निरोगता। चक्रीसु-खग-धरनेन्द्र-इन्द्र सु होय निज सुख भोगता।।२६।।
इत्याशीर्वाद। (२३) श्री नेमिनाथ-जिनपूजा (२२)
दोहा श्यामवरण तनु दश धनुष लक्षण संख सपेत।
मूरत नेमि जिनेशकी पूजत अति छवि देत।।१।। ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनचरणा अत्र अवतर संवौषट् इत्याह्वाननम्। ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनचरणा अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ : ठ : स्थापनम्। ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनचरणा अत्र मम सन्निहितो भव २ वषट् सनिधिकरनम्।
अष्टक (गन्धोदक छन्द) महाशुद्धपानी समनै समानी सु लै, आदि दै मुख्य गंगा नदीको।। उभै नेमिजिनके सुपद कंज पूजौं, लियौ भार तिन आप शिर धर जतीकौ।। तजी रूप भारी विनाशीक नारी, लई सार वालापनैं माँहि दीक्षा। सुगिरनार चढ़क धरो ध्यान बढ़क,
तिन्है मुक्ति सुख भुक्तिवेकी सुइच्छा।।२।। ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्रेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा।
सुवासीक सीरौ मिले रंग पीरौ, सुलै कुंकुमादिक द्रुमेश्वर दरीकौ। उभै नेमिजिनके सुपद कंज पूजौ,
लियौ भार तिन आप शिर धर जतीकौ। तजीरूपभारी.।।३।। ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्रेभ्यो संसारताप विनाशनाय चंदनम् निर्वपामीति स्वाहा।
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