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देवीदास-विलास
उज्ज्वल अक्षत नीर पखारे, पास धरों प्रभू तारनहारे। सुगुण हमध्यावें गणफणपति कथ पार न पावें सुगुण हम ध्या₹। जिनसम. ।।४।। ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतम् निर्वपामीति स्वाहा। पहुप महा उत्कृष्ट सुवासी, ले समरथ उर होऊ हुलासी। सुगुण हम ध्यानै गणफणपति कथ पार न पावैं सुगुण हमध्यावें। जिनसम. ।।५।। ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेद्राय कामवाणविध्वंशनाय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा। नेवज कर उत्साह बनायौ ले श्रीपति सरनागति आयौ। सुगुण हम ध्यावें गण फणपति कथ पार न पावें सुगुण हम ध्यावै। जिनसम. ।।६।। ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा। कर ले धरकर दीप प्रजालौं भक्ति करत जगमगत दिवालौ। सुगुण हम ध्यावें गणफणपति कथ पार न पावें सुगुण हम ध्यावै।। जिनसम. ।।७।। ॐ हीं श्रीनमिनाथ जिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा। खेवत धूप अधिक महकाती अगन मँझार सुगंध सुताती। सुगुण हम ध्यावें गणफणपति कथ पार न पा सुगुण हम ध्यावें। जिनसम. ।।८।। ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा। फल आदिक वादाम सुपारी सेवक होहि जजौं सर भारी। सुगुण हम ध्यावें गणफणपति कथ पार न पावै सगुण हम ध्यावै। जिनसम. ।।९।। ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। जलआदिक दरवें वसु लीजे भव-भर दुःख जलांजुल दीजे। सुगुण हम ध्यावें गणफणपति कथ पार न पावै सुगुण हम ध्यावें। जिनसम. ।।१०।। ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्थ्य निर्वपामीति स्वाहा।
गीतिका हम निरख जिन प्रतिबिम्ब पूजत त्रिविध कर गुण थापना। तिनके न कारज काज निज कल्याण हेतु सु आपना।। जैसे किसान करै जु खेती नाँहि नरपति कारनें।
अपनौं सु निज परिवार पालन हेत कारज सारनें। पूर्णाघ।।११।। जयमाल
दोहा . सुख उपजत नमिनाथ के सुन तसु वचन रसाल।
मति माफक तिनिकी कहँ सूखदायक जयमाल।।१२।।
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