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चतुर्विशंतिजिन एवं अन्य पूजा - साहित्य-खण्ड
फागुनवदि वारस ऋतु वसंत, सम्मेद शिखर चढ़ कर्महंत । तिनकौ निज ध्यान धरैं त्रिकाल, कवि देवीदास लखा गुपाल ।। २५ ।।
सोरठा
तिमिर सकल अज्ञान दूर भयौ जाती समय । सुखदातार निदान लेखे केवलज्ञानके ।।२६।। ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिनचरणाग्रेषु महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
जाप्य १०८ वार ॐ श्रीमुनिसुव्रतजिनाय नमः । गीतिका
विधि पूर्व जो जिनविम्बपूजत द्रव्य अरु पुनि भावसौं । अति पुण्यकी तिनके सुप्रापत होय दीरघ आवसौं । । जाके सुफल करि पुत्र धन-धान्यादि देह निरोगता । चक्रीसु-खग-धरनेन्द्र-इन्द्र सु होय निज सुखभोगता ।। २७ ।। इत्याशीर्वादः
(२२) श्रीनमिनाथ - जिनपूजा (२१)
दोहा
पन्द्रह धनुष सुहेम रंग, चिन्ह पाखुरी कंज । मूरत श्रीनमिनाथकी, पूजौं तन मन अंग । । १ । ।
ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनचरणा अत्र अवतर अवतर संवौषट इत्याह्वाननम् ।
ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनचरणा अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनम् ।
ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनचरणा अत्र मम सन्निहितो भव-भव वषट् सन्निधिकरणम् । अष्टक (ढार कार्तिककी)
लैकर नीर महा अतिठंडौ दै त्रय धारा सु सन्मुख छंडौ ।
सुगुण हम ध्यावैं गणफनपति कथ पार न पावैं सुगुण हम ध्यावैं ।।
जिन सम देव अवर नहिं दूजौं, श्रीनमिनाथ जिनेश्वर पूजौ ।
सुगुण हम ध्यावैं गण फनपति कथपार न पावैं सुगुण हम ध्यावैं । । २ । ।
ॐ ह्री श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलम निर्वपामीति स्वाहा।
३१३
शीतल परमल चन्दन गारौ, जिन प्रभुकी प्रति अग्र उतारौ । सुगुण हम ध्यावें गणफनपति कथ पार न पावें सुगुण हम ध्यावैं । जिनसम ।। ३॥ ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चन्दनम् निर्वपामीति स्वाहा ।
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