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देवीदास - विलास
पंचामृत मेवावर घृत पक नेवजकरि अति निर्मलौ । एजू-चरनकमल आगे धरि जिनके सब विधि काज सफल फलौ ।। भवि मल्लिनाथ पूजन चलौ । थकित ।। ६ ।।
ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनप्रतिमाग्रेषु क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा। दीपक ज्योति उगति मारुत करि प्रणमत मनु माथौ हलौ । एजू-चरनकमल आगे धरि जिनके सब विधि काज सफल फलौ ।। भवि मल्लिनाथ पूजन चलौ । थकित ।।७।।
ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनचरणाग्रेषु मोहान्धकारविनाशनाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा।
पावक मांहि खेवने कारण चन्दन आदिक लै चलौ ।
एजू-चरनकमल आगे धरि जिनके सबविधि काज सफल फलौ ।। भवि मल्लिनाथ पूजन चलौ । थकित ० । । ८ । ।
ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनचरणाग्रेषु अष्टकर्मदहनाय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा।
श्रीफल आदि अनार आदि फल जो द्रुमतैं आप हु ढलौ ।
एजू- चरनकमल आगे धरि जिनके सब विधि काज सफल फलौ ।। भवि मल्लिनाथ पूजन चलौ । थकित ।। ९ ।।
ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनचरणाग्रेषु मोक्षफलप्राप्तये फलम् निर्वपामीति स्वाहा।
जल आदिक परकार दरब वसु उज्ज्वल थार विधि काज सफल फलौ । । ए जू चरनकमल आगे धरि जिनके सब विधि काज सफल फलौ । भवि मल्लिनाथ पूजन चलौ । थकित ।। १० ।।
ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनचरणाग्रेषु अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
हम निरख जिन प्रतिविम्ब पूजत त्रिविध करि गुण थापना ।
जिनके न कारज काज निज कल्याण हेत सु आपना ।।
जैसे किसान करै ज् खेती नाँहि नरपति कारनैं ।
अपनों सु निज परिवार पालन कौ सु कारज सारनैं । पूर्णा । । ११ । ।
जयमाल
दोहा
मल्लि जिनेश अमल्लहो पायो अविचल ठाल । मति माफिक तिनकी कहौं भाषा करि जयमाल । । १.२ ।।
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