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चतुर्विशंतिजिन एवं अन्य पूजा-साहित्य-खण्ड (२०) श्री मल्लिनाथ-जिनपूजा (१९)
दोहा धनुष देह पच्चीस तसु हेम वरण सुखदाय।
मल्लिनाथ प्रति कुम्भ तसु लक्षण देत बताय।।१।। ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिन अत्र अवतर संवौषट् इत्याह्नानम्। ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिन अत्र तिष्ठ ठ : ठः स्थापनम्। ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिन अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट सन्निधिकरणम्।
अष्टक कंचनकी झारी भर लेकर गंगाजल अति निर्मलौ। एजू-चरण कमल आगे धरि जिनके सबविधि काज सफल फलौ।। भवि मल्लिनाथ पूजन चलौ। थकित भये तिनिके पद पूजत इन्द्रादिकको मद गलौ। एजू-ज्यों सूरज उद्योत जब नाहीं तब प्रकाश दीपक भलौ।।
भवि मल्लिनाथ पूजन चलौ।।२।। ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनप्रतिमाग्रेषु जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा।
चन्दन गारि कपूर मिलाकर अर जामें केशर गरौ। एजू- चरनकमल आगे धरि जिनके सबविधि काज सफल फलौ
भवि मल्लिनाथ पूजन चलौ। थकित.।।३।। ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनप्रतिमाग्रेषु संसारतापविनाशनाय चंदनम् निर्वपामीति स्वाहा ।
तन्दुल धवल सुवास अखंण्डित प्रासुक जल करिकै मलौ। एजू-चरण कमल आगे धरि जिनके सब विधिकाज सफल फलौ
भवि मल्लिनाथ पूजन चलौ।थकित.।।४।। ॐ ह्री श्रीमल्लिनाथजिनप्रतिमागेषु अक्षयपदप्राप्तये अक्षतम् निर्वपामीति स्वाहा।
ताजे पहुप सहित परमल गुण तापर भँवर करत कलौ। एजू-चरण कमल आगे धरि जिनके सब विधि काज सफल फलौ।।
भविमल्लिनाथ पूजन चलौ। थकित.।।५।। ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनप्रतिमागेषु कामवाणविध्वंसनाय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा।
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