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चतुर्विशंतिजिन एवं अन्य पूजा-साहित्य-खण्ड तिनके न विस्मय अरति चिन्ता, क्षुधादोष न व्यापहीं।
तिनके सु ज्ञान मझार ज्ञेयाकार आप सु आपहीं। हनि. ।।६।। ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथजिनप्रतिमाग्रे क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
तिनके सु वेद विकार नाहीं सप्त धातु बिना दिपैं।
तन परम औदारिक सु देखत कोटि रविशशि छवि छिपैं। हनि. ।।७।। ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथजिनप्रतिमाग्रे मोहान्धकारविनाशनाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा।
तिनके सुशिर सुरपति हरष कर चँवर चौसठ ढोरहीं।
तिनके सुअतिशय सरस चौतिस सकल जनमन बोरहीं। हनि.।।८।। ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथजिनप्रतिमागे अष्टकर्मदहनाय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा।
तिनके सु आगु अशोक तरूवर, पहुप तरू वरषावहीं।
तिनकी सु वानी खिरत भविजन सुनत सब सुख पावहीं। हनि.।।९।। ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथथजिनप्रतिमाये मोक्षप्राप्तये फलम् निर्वपामीति स्वाहा।
शोभित सु भामण्डल सु आसन, महा अति छवि छाजहीं।
तसु भाल पर धरि छत्र सुरपति शब्द दुंदुभि बाजहीं। हनि.।।१०।। ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथजिनप्रतिमाये अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
गीतिका हम निरख जिन प्रतिविम्ब पूजत त्रिविध कर गुण थापना। तिनके न कारज काज निज कल्याण हेत सु आपना।। जैसे किसान करै जु खेती नाँहि नरपति कारनै।
अपनौ सु निज परिवार पालन कौं सु कारज सारनै।।११।। ॐ ह्रीं अरहनाथजिनप्रतिमाग्रे पूर्णर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
(जाप्य १०८ बार - ॐ ह्रीं अरहनाथाय नमः) जयमाल
दोहा अरहनाथ अविचल भये हनि अरि कर्म कराल। मति माफिक तिनकी कहौं भाषा कर जयमाल।।१२।।
पद्धडी हथिनापुर नग्र महा अनूप, गुणवन्त सुदर्शन नाम भूप। मित्रा देवी जिसका सु नाम, तिन पटतर और नहीं सुनाम।।१३।।
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