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________________ ३०४ देवीदास-विलास जाके सुफल करि पुत्र धन-धान्यादि देह निरोगता। चक्रीसु-खग-धरनेन्द्र-इन्द्र सो होय निज सुख भोगता।।२८।। इत्याशीर्वाद (जाप्य १०८ वार श्री कुन्थनाथाय नमः) (१९) श्रीअरहनाथ-जिनपूजा (१८) दोहा तीस धनुष कंचन वरन, लक्षण तसु पाठीन सो प्रति अरहजिनेशकी, पूजौं परम प्रवीन।।१।। ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथजिनप्रतिमाग्रे पुष्पाञ्जलिम् क्षिपामि। गीतिका जिनके सु पास रही न फास सु जरा रोग न आबहीं। तिनको सु जन्मन फिर न होय न उन्हें मरण सतावहीं।। हनि कर्म चार सु घातिया प्रगटे सु उर गुण चार हैं। पूजौं सु उज्ज्वल नीर लेकर, अरहनाथ अठार हैं।।२।। ॐ ह्रीं श्री अरहनाथजिनप्रतिमाग्रे जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा। तिनके न रोग वियोग शोक स्वजोग देख अनन्त जू। तिनके न पाप न पुण्य श्री परमात्मा भगवन्त जू। हनि कर्म चार सु घातिया प्रगटें सु उर गुण चार हैं। पूजौं सु शीतल गंध करि जिन अरहनाथ अठार हैं।।३।। ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथजिनप्रतिमाग्रे संसारतापविनाशनाय सुगन्धम् निर्वपामीति स्वाहा। तिनके न खेद न स्वेद मद निरभय दशा उदित भई। तिनके न काम न धाम पुनि करनी सकल विधि तज दई। हनि कर्म चार सु घातिया प्रगटे स उर गुण चार हैं। पूजौं सु चाँवर धोय कर जिन अरहनाथ अठार हैं।।४।। ॐ ह्री श्रीअरहनाथजिनप्रतिमाये अक्षयपदप्राप्तये अक्षतम् निर्वपामीति स्वाहा। जिनके न राग न द्वेष मोह न, सहज शुद्ध दशा जगी। तिनके न क्रोध न मान माया लोभ भय परनति भगी। हनि कर्म चार सु घातिया प्रगटे स उर गुण चार हैं। पूजौं सु उत्तम पहुप लेकर, अरहनाथ अठार हैं।।५।। ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथजिनप्रतिमा कामवाणविनाशनाय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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