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चतुर्विशंतिजिन एवं अन्य पूजा-साहित्य-खण्ड हस्तनापुर नगर सर्व शोभा धरैं। विश्वसेन सु नृप राज जहँ को करै।। नाम एरा सु देवी सु तिनके त्रिया। जासु कवि कौंन वरनैं सुछवि गुण क्रिया।।१३।। छोड़ सर्वार्थसिद्धि सु को चले। कूख तिनिकी सुपर काज उपजत भले।। सप्तमी वदि सु भादों जु महिना जनैं। त्रय सु दशमी सुदी जेठ की दिन गर्ने।।१४।। नखत-भरनी बखत आयु इक-लक्ष की। सहस-पनवीस वरषन कुँवरपक्ष की।। राज पंचास गन सहस वरनत कियौ। जेठ वदि चौथ के दिन सु जिन तप लियौ।।१५।। काल तप सहस पच्चीस वरईं लही। वृक्ष नन्दी सु तरें जाय दीक्षा लई।। सहस भूपति सहि परम व्रत धारनौं। जाय गौ-दूध लीनों तिन पारनौं।।१६।। नाम सौमंत सरपुर सु ग्रन्धन लिखें। सुखिय प्रियमित्र राजा सुमन्दिर बिखें।। वरष षोड़स सु छदमस्तता तहें लगे। पौष सुदि ग्यारसी ज्ञान केवल जगै।।१७।। नसत अरि कर्म का और करनैं रह्यौ।। चार साढ़े समोशरण जोजन लह्यौ।। चक्र आयुध सु दे आदि गणधर बढ़े। जासु परमित सु छत्तीस ग्रन्थन चढ़े।।१८।। सहस वासट सु तिहिं पास प्रति गणधरी। सहस वितरित सजिन ध्वनि सहित उच्चरी।। सहस गन साठ-सय-तीन पुनि अर्जका।। लक्ष श्रावक उभय विधन सय वर्जिका।।१९।। दुगुन लख श्राविका पास जिनगुन रमी। शिवजती सहस पंचास-छै-सै कमी।।
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