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________________ देवीदास - विलास सो छूटै दुखदायक मेरौ ले चरुधर कर मांही। सुकारण पूजत हौं । श्रीशान्तिनाथ ।। ६ ।। ॐ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा । २९८ नाम कर्म छट्टमो विगारै सूक्ष्मत्व गुण भारी । तिहिक होय निषेध प्रजालै दीपक भरले थारी । । सुकारन पूजत हौं । श्रीशान्तिनाथ ।। ७ ।। ॐ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा । गोत्रकर्म सातमों जग जाना अगुरुलघु गुण वैरी । सो निर्मल होय मैं खेऊँ धूप महागुन गैरी । । सुकारण पूजत हौं । श्रीशान्तिनाथ ।। ८ ।। ॐ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा। अन्तराय आठमों महारिपु वल अनन्त कौ द्रोही । सो न रहै जु पास हमारे लै फल सुन्दर टोही । । सुकारन पूजत हौं । श्रीशान्तिनाथ ।। ९ ।। ॐ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलम् निर्वपामीति स्वाहा। आठ करम ये ही जो मेरे आठ महागुन दावैं। आठ दरब लै अर्घ संजोयो लेकर शिवपथ पावैं ।। सुकारण पूजत हौं । श्रीशान्तिनाथ ।। १० ।। ॐ ह्रीं श्रीशान्तनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यंपदप्राप्ताय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । गीतिका हम निरख जिन प्रतिविम्ब पूजत त्रिविध कर गुन थापना । तिनिके न कारज काज निज कल्यान हेत सु आपना । । जैसे किसान करै ज् खेती नाँहि नरपति कारनैं । अपनौं सु निज परिवार पालन के सु कारज सारनै । । ११ । । पूर्णा जयमाल दोहा शान्तिकरनहारे सुजिन घात घातिया साल । मति माफिक तिनिकी कहूँ भाषा करि जयमाल । । १२ ।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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