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________________ २८९ चतुर्विशंतिजिन एवं अन्य पूजा-साहित्य-खण्ड राजा सुजय हैं जहाँ नन्द-नगरी धनी गाय-पय विधि जहाँ पारणे की बनी वर्ष पन तीन छदमस्थ, गनती गने पूस सुदी दशमी दिन ज्ञान केवल जनै।।१७।। साझ वेरा वि, निधि मिलि धाय के। षष्ट जोजन समोशरण सुखदायके नेक नामादि गनधर, सो पचवन जुरे सहस-अरसठ सुपुनि पति सुगणधर परे।।१८।। तीन-हजार एक-लाख व्रत अर्जिका नव-सहस ऋद्ध वैक्रियक धर मंजका लक्षवर उभय श्रावकान मय श्राविका ___ आठ से-सहस सौ अवधि ज्ञानीयका।।१९।। पाँच-साढ़े सहस ज्ञान मनपरजयी गनहु तिन तुल्य केवलीय तहँ सुखमयी वादि तिनके सहस-तीन दहसौ लहों यक्ष को नाम पाताल तिनकों कहो।।२०।। जक्षनी जासु गान्धारी शुभ लक्षणा और वरणन करौं कैसे प्रज्ञा विना सुदि सु आषाड़ शुभ दन सु आठे परी शिखर समेद चढ़ि मुक्ति-कामिनी बरी।।२१।। सोरठा वर इक्ष्वाकु सु वंस, विमल भये जग में महा। अष्ट कर्म विध्वंस, होत भये शिव सिद्ध पुन।।२२।। ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनचरणाग्रे पूर्णाघ निर्वपामीति स्वाहा। गीतिका विधि पूर्व जो जिनबिम्ब पूजत द्रव्य अरु पुन भावसौं। अति पुण्य की तिनकें सु प्रापत होय दीरघ आयुसौं जाके सुफल कर पुत्र धन-धान्यादि देह निरोगता। चक्रेश खग धरणेन्द्र सु होहि निज सुख भोगता।।२३।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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