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देवीदास-विलास
गीतिका हम निरख जिनबिम्ब पूजत त्रिविध कर गुन थापना तिनके न कारज काज निज कल्यान हेत सुआपना जैसे किसान करै जू खेती नाँहि नरपति कारने
अपनो सु परिवार पालन को सु कारज सारने।।११।। ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनप्रतिमाग्रे पूर्णाघ निर्वपामीति स्वाहा।
(जाप्य १०८ वार-श्रीविमलनाथाय नमः) जयमाल
दोहा
विमलपथ प्राप्ति भये श्री जिन विमल कृपाल। मति माफिक तिनकी कहों भाषा कर जयमाल।।१२।।
ढाल जयमाल की पुरी कंपिल्य कृतवर्म राजा जहां
जासु रानी जयश्यादेवी महा। तजि सहस्त्रवर स्वर्ग तें आपके
गर्भा माहिं हुये थिर प्रभु मात के।।१३।। जेठ वदी दिन सुदशमीय है अति भली
जहाँ सुकर ठीक नवमास पुन गन चली माघसुदी चऊदशी वार जन मन भलो
पूर्व भाद्रापदा नखत शुभ बरणयो।।१४।। लाख गन साठ पुनबरण आयुस कही
लाखपन्द्रह सुबरसन को कुँवरावरि लाख पुनतीस बरसे गई राज में
माघ सुदी चौथ दिन को सुतप काज में।।१५।। लाख पन्द्रह सु पुनि वर्ष यह तप करे
सहस कर नाथ जुत, वृक्ष जम्बू तरें लय सु दीक्षा यहाँ शुद्ध गुन ध्याय के
परम आनन्द कर सहज सुख पायके।।१६।।
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