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चतुर्विशंतिजिन एवं अन्य पूजा-साहित्य-खण्ड २८७ पुन केवल दर्शन धारी धर पूजत केशर गारी लीजे स्वामी विमलनाथ जू को शरणा तसु ध्यान धरत भय तरना
ताको जनम न होय न मरना लीजे विमलनाथ जू को शरना।।३।। ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनचरणाग्रे संसारतापविनाशनाय चन्दनम् निर्वपामीति स्वाहा।
प्रभु बल अनंत सुख छाजै धर पूजत तन्दुल छाजे, लीजे स्वामी विमलनाथ जू को शरणा, तसु ध्यान धरत भय तरना
ताको जनम न होय न मरना लीजे विमलनाथ जू को शरणा।।४।। ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनचरणाग्रे अक्षयपदप्राप्तये अक्षतम् निर्वपामीति स्वाहा।
जुत बलवीरज अविनाशी धर पूजत पहुप सुवासी, लीजै स्वामी विमलनाथ जू को शरणा, तसु ध्यान धरत भय तरना
ताको जनम न होय न मरना लीजे विमलनाथ जू को शरणा।।५।। ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनचरणाग्रे कामबाणविध्वंसनाय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा।
बल ज्ञानावरणी घाते, धर पूजन विजन ताजे,
लीजे स्वामी विमलनाथजूको शरणा, तसुध्यान धरत भय तरना। ताकौ.।।६।। ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनचरणाग्रे क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा
जिन दर्शन को पट खोले, धर पूजत दीप अमोले,
लीजे स्वामी विमलनाथजू को शरणा, तसध्यान धरत भय तरना। ताको.।।७।। ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनचरणाग्रे मोहान्धकारविनाशनाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा।
अरि मोह हनो दलबंदी, धर पूजत धूप दशांगी
लीजे स्वामी विमलनाथ जू को शरणा, तसु ध्यान धरत भय तरना।ताको.।।८।। ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनजरणाग्रे अष्टकर्मदहनाय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा।
जे अन्तराय के हन्ता, धर पूजत सुक्ख अनन्ता
लीजे स्वामी विमलनाथजू को शरणा, तसुध्यान धरत भय तरना। ताको.।।९।। ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनचरणाग्रे मोक्षफलप्राप्तये फलम् निर्वपामिति स्वाहा।
जिन दोष अठारह जीते, धर पूजत अर्घ सुधीते
लीजे स्वामी विमलनाथजूको शरणा, तसुध्यान धरत भयतरना। ताको.।।१०।। ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनचरणाग्रे अनर्घपदप्राप्ताये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
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