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देवीदास-विलास
दुगुनी तिन” सु श्रावगनी, सत चौवन इन सु औधधनी। मनपर्ययवंत नमौं सु अवे, परमागम में छै-हजार सवै।।२२।। छै-हजार सु केवलज्ञान मुनी, सुअनन्त चतुष्टय के सुधनी।। सब होय सहस्त्र-सुचार गिनैं तहँ वादिय वाद सुहात तिन्हैं।।२३।। वर जक्ष कुवार सुनाम सही, गन धरिये जक्षिन नाम कही। जिनराज विभौ कहँलौं वरनौं, तिनके सु न जन्म जरा मरनौं।।२४।।
सोरठा चम्पापुरि चढ़ मोखभादों सुदि पाचें दिनां। रहित अठारह दोष भए वंस इक्ष्वाकुमें।।२५।। महार्घ (जाप्य १०८ बार श्रीवासपूज्यजिनाय नमः)
गीतिका विधि पूर्व जो जिनबिम्ब पूजत द्रव्य अरु पुनि भावसों अतिपुण्यकी तिनके सु प्रापत होय दीरघ आयुसों।। जाके सुफल करि पुत्र धन-धान्यादि देह निरोगता। चक्रीसु-खग-धरनेन्द्र-इन्द्र सो होहि निज सुख भोगता।।२६।।
इत्याशीर्वाद। (१४) श्रीविमलनाथ-जिनपूजा (१३)
दोहा
धनुष साठ कंचन वरण, लक्षण प्रगट वराह।
विमल नाथ प्रति जान भविपूजौ कर उत्साह।।१।। ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनचरणाग्रे पुष्पांजलिं क्षिपामि।
अष्टक त्रिभुवन पति केवलज्ञानी, हम पूजत कर धर पानी। लीजे स्वामी विमलनाथ जू को शरणा, तसु ध्यान धरत भय तरना
ताको जनम न होय न मरना, लीजे विमलनाथ जू को शरना।।२।। ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनचरणाग्रेजन्मजरामृत्युविनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा।
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