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________________ २८५ चतुर्विशंतिजिन एवं अन्य पूजा-साहित्य-खण्ड गीतिका हम निरख जिनप्रतिबिम्ब पूजत त्रिविधि कर गुन थापना। तिनके न कारन काज निज कल्याण हेत सु आपना।। जैसे किसान करै जु खेती नाँहि नरपति कारनै। अपनै सु निज परिवार पालनौ सु कारज सारनै।।११।। जयमाला दोहा वासपूज्य जिन परिहरी, चन्द्र चतुर्गति चाल। मति माफक तिनकी कहौं भाषाकर जयमाल।।१२।। त्रोटक छन्द उपजे तज शुक्र सुस्वर्ग महा चम्पापुर नग्र सुनाम जहाँ। वसुदेव नरेश अरीह जिता। तसुरानी महाविजया वनिता।।१३।। तिनके निज गर्भ विर्षे उतरे। छट आदि अषाड़ लगैं सुधरे।। . नव मास गये सु कछूक कमी। वदि फागुन जन्म चतुर्दशमी।।१४।। सुनक्षत्र भिषासत नाम थकी। वरषायुष लाख बहत्तर की।। वरर्षे सु अठारह लक्ष लई। सुख सौं कुँवरावर मांहि गई।।१५।। सु लियौ तप राजविलास विना, वदि फागुन चतुर्दशमी सु दिना तप चौवन लाख सुवर्ष करें जग भोग भुजंगम देख डरे।।१६।। प्रभु साथ भए तजकै सु मुनी, सय तीन छिहतर राजधनी।। तरुपाडर दीक्षित वृक्षतरें, सवही स्वयमेव सुध्यान धरै।।१७।। सुसिद्धारथ नाम लही नगरी, जहँ सुन्दर नाम सुराजधरी। हरष्यौ तिनिको प्रभ देख हियौं, जिनके गउ-दूध अहार लियौं।।१८।। छदमस्त सुद्धादस मास रहे, जहँ चार प्रकार सु कर्म दहे। अपराहिन काल सु माघ सुदौ, दिन दोयज केवलज्ञान उदौ।।१९।। तिनिकौ सम वादि कहौ सरना, षट आदि सुजोजन को वरना। धरमादिक जै गनधारि कहै, गणती गनजे षट षष्ट फहै।।२०।। पुनि जे गनजू मनकी छनती, सुहजार बहत्तर है गनती। अजया इकलाख सहस्र सु छे, लहिये जहँ श्रावक लच्छ उभै।।२१।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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