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देवीदास-विलास
वासुपूज्य जिन पूजिये।।
शुचि करके अति उज्ज्वल गात, उज्ज्वल दरब सुल्याइये।
तनमन के सब पातक जात, वासुपूज्य जिन पूजिये।।६।। ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनचरणाग्रे क्षुधा रोगविनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
दीपक रत्न जड़ाव के, अति दमकें सम सूरज जोत। यज्ञ हेत धर ल्याइये, वर तिन केवलज्ञान उद्योत। वासुपूज्य जिन पूजिये। शुचि करके अत उज्ज्वल गात, उज्ज्वल दरब सु लाइये।
तन मन के सब पातक जात, वासुपूज्य जिन पूजिये।।७।। ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनचरणाग्रे मोहान्धकारविनाशनाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा।
ले धर पावक खेइये, बहु विधि सों वर धूप दशांग। देय मनोज्ञ सुवास सो, तिन प्रभु चरण अभंग। वासुपूज्य जिन पूजिये।
शुचि करके अति उज्ज्वल गात, उज्ज्वल दरब सु लाइये।
तन मन के सब पातक जात, वासुपूज्य जिन पूजिये।।८।। ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनचरणाग्रे अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
ल्याय लवंग सु लायची, बादामें खारक दाख जाति फल जल धोयकैं जिनपत की प्रति आसें राख शुचि करके अति उज्ज्वल गात, उज्ज्वल दरब ल्याइये।
वासुपूज्य जिन पूजिए।।९।। ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनचरणाग्रे मोक्षफलप्राप्तये फलम् निर्वपामीति स्वाहा।
नीर सुगन्ध सुआदि दै बहुविधि के फासू फल अंत थार मध्य धरि साथीयौं उर धरिके गुण जे भगवंत शुचि करके अति उज्ज्वल गात, उज्ज्वल दरब ल्याइये।
तन मन के सब पातक जात, वासुपूज्य जिन पूजिये।।१०।। ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनचरणाग्रे अनर्घ्यपदप्राप्ताय अयं निर्वपामिति स्वाहा।
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