________________
२८३
चतुर्विशंतिजिन एवं अन्य पूजा-साहित्य-खण्ड (१३) श्री वासुपूज्यजिनपूजा (१२)
दोहा
लाल वरण सत्तर धनुष, उन्नत तिनकी देह। महिष चिह्न लखि पूजिये, वासुपूज्य प्रति जेह।।१।।
अष्टक शीतल छीर समुद्र कौ, घट भरि सुन्दर तोय। लै त्रय धारा दीजिये हैं साम्हें पद पंकज दोय।। वासुपूज्य जिन पूजिये। शुचि करके अति उज्ज्वल गात, उज्ज्वल दरब ल्याइये।
तनमन के सब पातक जात, वासुपूज्य जिन पूजिये।।२।। ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनचरणाग्रे जन्ममृत्युविनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा।
वावन चन्दन आदि दे, धिस जलसों अतिसार सुवास। ले जिन शरण सुदेव के, धर आगे क्रम वारिज जास।। वासुपूज्य जिन पूजिये। शुचि करके अति उज्ज्वल गात, उज्ज्वल दरब ल्याइये।
तनमन के सब पातक जात, वासुपूज्य जिन पूजिये।।३।। ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनचरणाग्रे संसारतापविनाशनाय चन्दनम् निर्वपामीति स्वाहा।
धोकर चावल ऊजरे अति अखण्ड सब एक स्वरूप। पुंज चरण तव दीजिये, गणु प्रकटे सु अनूप।। वासुपूज्य जिन पूजिये। शुचि करके अति उज्जवल गात, उज्ज्वल दरब ल्याइये।
तनमन के सब पातक जात, वासुपूज्य जिन पूजिये।।४।। ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनचरणाये अक्षयपदप्राप्तये अक्षतम् निर्वपामीति स्वाहा।
भावन परम विलोककैं, कर उत्तम लीजे फूल। वासुपूज्य जिन पूजिये। शुचि करके अति उज्ज्वल गात, उज्ज्वल दरब ल्याइये।
तनमन के सब पातक जात, वासुपूज्य जिन पूजिये।।५।। ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनचरणाग्रे कामवाणविध्वंसनाय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा।
नेवज पक्व सुघीऊ को, मिल पागै खुरमा खाँड़। हाथ जोर करके उभय, जिनप्रभु अग्र सु छाँड़।।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org