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________________ २८२ देवीदास - विलास सुदि ग्यारस फागुन मास भली, जनमें नगनाथ अनन्तबली। अति उत्तम श्रवण नक्षत्र पर्यो यश जास जगत्रविषै वगर्यौ ।। १५ ।। तसु आयुष आगम उक्त भनी, चौरासिय लाख सु वर्ष गनी । वरषें इकईस सुलक्ष गई, सुखसों कुँवरावर माँहि गई ।। १६ ।। वरसें सुवयालिस लाख धरो, निरधार निशंकित राज करो । तप लागत फाल्गुन एकादशी, वरसायुष लाख इकैस लसी ।। १७ ।। जिन दीक्षित तिन्दुक वृक्ष तरें, तसु संग सु भूप सहस्त्र धरें । नगरी उत्कृष्ट सिद्धार्थपुरी, नृपनन्द नाम सु राज सुरी । । १८ ।। पय- धेनु सुहेत महानिधि को, तिन भोजन दान दियौ विधि कौ । छदमस्त रहे वरसे सु उभय, उर अन्तरकी निजदृष्टि चुवै । । १९ ।। बदि माघ अमावस कौ सुभग्यौ, तिनके वर केवलज्ञान जग्यौ । तसु सांझ सुकाल समय वरणा, वर जोजन सात समोशरणा ।। २० ।। गणधर सु आदि धर्मादिक कौ, सतहत्तर बुद्धि विचार सकौ । प्रति जे गणधार महासुरसी, गन आठ-सहस्त्र सु चार- असी ।। २१ ।। अजयावरणी सु जहाँ अथवा, तहाँ पंच सहस्त्र सुलक्ष सवा । दुग लाख श्रावक संघ सुनी, गन श्रावगनी तिनतैं दुगनी ।। २२ ।। अवधीमुनि - षष्ट- हजार गने, मनपर्ययवन्त मुनी तितने । पैसठ सौ केवलज्ञान धनी, मित वादिय पंच -सहस्त्रगनी ।। २३ ।। जहां कुमार जक्ष सु नाम लियौ, जक्षिन महाकाली नाम त्रियौ । अनुभूति महा सुसमोशरणी, पुन जात सु तौकिह पै वरनी।। २४ । । सोरठा शिखर सम्मेद सुशीश, चढ़ सुदेव मुक्ती गये । कर्म कुलाचल परिस, श्रावण सुदि की पूर्णिमा । . २५ ।। ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनचरणाग्रे जयमालार्ध्य निर्वपामीति स्वाहा। गीतिका विधिपूर्व जो जिनबिम्ब पूजत द्रव्य अरू पुन भावसों । अतिपुण्यकी तिनकें सु प्रापत होय दीस्घ आयुसों । । जाके सुफल कर पुत्र धन-धान्यादि देह निरोगता । चक्रेश- खग धरणेन्द्र-इन्द्र सु होहि निज सुख भोगता । । २६ ।। पुष्पाञ्जलिं क्षिपामि । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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