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________________ प्रस्तावना प्रदान किया था । बुन्देल - केशरी छत्रशाल का वह साहित्यिक - प्रेम हिन्दी - साहित्य कभी भी भुला नहीं सकता, जब उन्होंने अपनी ही धरती के लाल महाकवि भूषण की विदाई के समय उनकी पालकी में अपना कन्धा दिया था और उस रूप में साहित्य एवं सहित्यकार को महान् सम्मान दिया था। यही वह भूमि है, जहाँ के राजाओंमधुकरशाह एवं इन्द्रजीत सिंह ने मुगलों के विरोध में एक ओर जहाँ अपने शौर्यवीर्य एवं पराक्रम के चमत्कार दिखलाए थे, वहीं दूसरी ओर गोपी-कृष्ण की स्मृति में अपनी लेखनी का हृदयस्पर्शी चमत्कार भी दिखलाया था। एक हिन्दी कवि के रूप में महाराजा मधुकरशाह का यह पद - " ओड़छौ' वृन्दावन सौं गाँव” आज भी बुन्देलखण्ड के झोपड़ों से महलों तक सर्वत्र सुनाई देता है. यही वह भूमि हैं, जहाँ जगनिक एवं गोस्वामी तुलसीदास के बाद महाकवि केशव, प्रवीणराय, कवियित्री- केशव पुत्रवधु, बिहारी, बलभद्र, खड़गसेन कायस्थ, गोविन्दस्वामी, वीरबल, रहीमखाँ, हरिराम, टोडरमल, आसकरण, चतुर्भुज, कल्याण, बालकृष्ण, गदाधर एवं अमरेश प्रभृति कवियों ने अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व से इसे महिमामण्डित किया था। हिन्दी जैन कवि भुवानीदास ने भी सुन्दर गीतों की रचना की, जो आज भी बुन्देलभूमि में लोक गीतों के रूप में प्रचलित हैं । वन्दनीय बुन्देलखण्ड विविध कलाकृतियों, मठों एवं मन्दिरों का प्रारम्भ से ही प्रमुख केन्द्र रहा है। वहाँ शायद ही ऐसा कोई ग्राम, कस्बा, नगर अथवा शहर हो, जहाँ जैन एवं जैनेत्तर हस्तलिखित पोथियों का भाण्डार न हो । किन्तु शताब्दियों से उनका आलोड़न - विलोड़न नहीं हो पाया है और हजारों-हजार पोथियाँ (हस्तलिखित-ग्रन्थ) काल-कवलित हो चुकी एवं होती चली जा रही हैं। बुन्देली कवियों की इसी श्रृंखला में हिन्दी के एक जैन कवि देवीदास भी अपना विशेष महत्व रखते हैं, जिन्होंने अनेक रचनाओं का प्रणयन किया। इन रचनाओं का संग्रह देवीदास - विलास नाम से प्रसिद्ध है और वे प्रायः सभी अप्रकाशित हैं। उपलब्ध प्रति का परिचय निम्न प्रकार है १. ओड़छौ वृन्दावन सौ गाँव. गोबरधन सुख - सील पहरिया जहाँ चरत तृन गाय । । जिनकी पद-रज उड़त सीस पर मुक्त-मुक्त हो जाय । सप्तधार मिल बहत वैत्रवे जमना - जल उनमान ।। नारी नर सब होत पवित्र कर-कर के स्नान । सोथल तुंगारण्य बखानो ब्रह्मा वेदन गायौ । । सो थल दियो नृपति मधुकुर को श्रीस्वामी हरदास बतायौ । Jain Education International (बुन्देलखण्ड की एक लोकप्रिय अनुश्रुति) For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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