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________________ देवीदास - विलास वह ऐतिहासिक है। उन्होंने विषम परिस्थितियों में भी राष्ट्रहित को ध्यान में रखकर एक सच्चे लोकनायक की भाँति हिन्दी में ऐसे साहित्य का प्रणयन किया, जो गिरते हुए मानव मूल्यों को पुनः प्रतिष्ठित करने में पूर्ण रूप से सक्षम है। आत्मचिन्तन, आत्मविकास एवं उसके माध्यम से स्वस्थ समाज एवं राष्ट्रनिर्माण ही उनका प्रमुख लक्ष्य था । उन्होंने सत्यम्, शिवम् एवं सुन्दरम् के आदर्श रूप को अपने काव्य के माध्यम से मुखरित करने का अथक प्रयास किया है। लोककल्याण की भावनाओं का गान करने में जहाँ उन्होंने एक ओर विभिन्न सामान्य छन्दों एवं लोक-संगीत का आश्रय लिया, वहीं दूसरी ओर यमन, बिलावल, सारंग, जयजयवंती, रामकली, दादरा, गौरी, केदार, धनाश्री आदि राग-रागनियों का सहारा भी लिया है। उन्होंने भक्ति के शास्त्रीय एवं सहज दोनों पक्षों का उद्घाटन करके भक्ति को जन-सामान्य के लिए भी सहज बना दिया है। इस प्रकार कवि देवीदास ने रीतिकाल में भी अध्यात्म एवं भक्ति की जैसी गंगा-जमुनी धारा प्रवाहित की, वह बुन्देली हिन्दी - साहित्य के इतिहास की स्वर्णिम - रेखा बनकर उभरी है। (ख) कवि देवीदास के बुन्देलखण्ड के वैभव की एक झाँकी भारत की हृदयस्थली मध्यप्रदेश के सीमान्त पर एक ऐसा भी प्रदेश है, जो रामायण एवं महाभारत कालीन इतिहास के अनेक तथ्यों को अपने अस्तित्व में समाहत किए हुए है. किन्तु दुर्भाग्य से परवर्ती कालों में वह उपेक्षित होता रहा है। यद्यपि चेदि, हैहय, कलचुरि, चन्देल, गहड़वाल एवं बुन्देला ठाकुरों ने वहाँ अनेक स्वाभिमान पूर्ण पराक्रमी कार्य किए हैं और अपनी अतीतकालीन महिमामयी परम्पराओं को सुरक्षित रखने के लिए वे सर्वस्व न्यौछावर करते रहे हैं । इतिहास इसका साक्षी है। वर्तमान मे उसी उपेक्षित महामहिम - भूखण्ड को बुन्देलखण्ड के नाम से जाना जाता है। यही वह पुण्यभूमि है, जहाँ मगध के द्वादशवर्षीय अकाल के समय आचार्य भद्रबाहु अपने १२ सहस्र मुनिसंघ तथा नवदीक्षित मगध सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य (प्रथम) के साथ बिहार करते हुए रुके थे और यहाँ से आगे बढ़कर दक्षिण भारत की ओर गए थे। यही वह भूमि है, जहाँ मातृभूमि की सुरक्षा के लिए वीर चम्पतराय बुन्देला ने अपने शौर्य-वीर्य का पुरजोर प्रदर्शन किया था, यही वह पुण्यभूमि है, जहाँ महाराजा छत्रशाल ने परनामी - सम्प्रदाय के महान् साधक स्वामी प्राणनाथ का आशीर्वाद प्राप्त कर बुन्देल - भूमि को श्री - समृद्धि प्रदान कर उसे नया तेजस्वी जीवन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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